सोमवार, 8 अप्रैल 2024

एक ही रात में यहां के 84 गांवों के लोग गायब हो गए।

 ये है जैसलमेर का कुलधरा गांव। इस गांव में 170 साल पहले कुछ ऐसा हुआ था कि एक ही रात में यहां के 84 गांवों के लोग गायब हो गए। आज भी रहस्य है कि ऐसा क्या हुआ कि यहां के लोग कहां चले गए।कहते हैं कि इस गांव को एक ऐसा श्राप दिया गया कि ये गांव रातोंरात उजड़ गया और आज भी यहां कोई नहीं रहता। जिस रात गांव के लोग यहां से गायब हुए, आज भी सब वैसा का वैसा है। घरों की दीवारें, किवाड़। ये गांव खंडहर में जरूर तब्दील हो गए हैं लेकिन इनका अस्तित्व आज भी बना हुआ है। ऐसा माना जाता है कि इस गांव को साल 1300 में पालीवाल ब्राह्मण समाज ने सरस्वती नदी के किनारे इस गांव को बसाया था। किसी समय इस गांव में काफी चहल-पहल रहा करती थी। लेकिन आज ऐसी स्थिति है कि 170 वर्षों के बाद भी को बसावट नहीं है। आइए हम आपको इस गांव की कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं।

ब्राह्मणों ने ही बसाया था कुलधरा को

 इस गांव की पुस्तकों और साहित्यिक वृत्तांतों से पता चलता है कि पाली के एक ब्राह्मण कधान ने सबसे पहले इस जगह पर अपना घर बनाया था। वहां पर एक तालाब भी खोदा था, जिसका नाम उसने उधनसर रखा था। पाली ब्राह्मणों को पालीवाल कहा जाता था। कुलधरा गांव मूल रूप से ब्राह्मणों ने बसाया था, जो पाली क्षेत्र से जैसलमेर चले गए थे और कुलधरा गांव में बस गए थे।

यहां देवी मं​दिर भी है, जो खंडहर हो चुका

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित तरीके से रखा जाने वाला कुलधरा गांव अब एक ऐतिहासिक स्थल है। यहां पर्यटक घूमने आते हैं। यहां एक देवी मंदिर भी है, जो अब खंडहर हो चुका है। मंदिर के अंदर शिलालेख है जिसकी वजह से पुरातत्वविदों को गांव और इसके प्राचीन निवासियों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने में मदद मिली है।

सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक घूम सकते हैं यहां

कुलधरा गांव जैसलमेर से 14 किमी दूर है। ये जगह, राजस्थान में होने की वजह से अत्यधिक गर्म है। यहां घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच है। गांव में आप रोजाना सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक घूमना-फिरना कर सकते हैं। चूंकि ये जगह भूतिया मानी जाती है, इसलिए स्थानीय लोग सूर्यास्त के बाद द्वार बंद कर देते हैं। कुलधरा गांव में एंट्री फीस 10 रुपए प्रति व्यक्ति है। घूमने के दौरान झलकियां आपको यहां देखने को मिल जाएंगी। कुलधरा क्षेत्र एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें लगभग 85 छोटी बस्तियां शामिल हैं। गांवों की सभी झोपड़ियां टूट चुकी हैं और खंडहर हो चुकी हैं। 

ये मिथक जानना जरूरी 

प्रचलित मिथक के अनुसार, 1800 के दशक में, गांव मंत्री सलीम सिंह के अधीन एक जागीर या राज्य हुआ करता था, जो कर इख्ठा करके लोगों के साथ विश्वासघात किया करता था। ग्रामीणों पर लगाया जाने वाले कर की वजह से यहां के लोग परेशान रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि सलीम सिंह को ग्राम प्रधान की बेटी पसंद आ गई और गांव वालों को इसपर धमकी दे डाली कि अगर उन्होंने इस बात की विरोध करने की कोशिश की या रस्ते में आए, तो वह और कर वसूल करने लगेगा। अपने गांव वालों की जान बचाने के साथ-साथ अपनी बेटी की इज्जत बचाने के लिए मुखिया समेत पूरा गांव रातों-रात फरार हो गया। गांव वाले गांव को छोड़कर किसी दूसरी जगह पर चले गए। ऐसा कहा जाता है कि गांव वालों ने जाते समय गांव को ये श्राप दिया था कि यहां आने वाले दिनों में कोई नहीं रह पाएगा।




शनिवार, 20 मई 2023

भारत की 5 ऐसी अजीब जगह जो आपकाे हैरान कर देगी

 


 भारत में कई अजीबों-गरीब जगह हैं, जो आपको को हैरान कर देती हैं। बस यहां मॉन्स्टर्स नहीं हैं, लेकिन कहानियां भी किसी मॉन्स्टर्स से कम नहीं है। चलिए आपको देश की कुछ अजीबों गरीब जगहें बताते हैं, जहां आपको एक बार जरूर जाना चाहिए।

अहमदनगर से 35 किमी दूर स्थित एक छोटा सा गांव शनि शिंगणापुर अपने शनि मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन यह केवल एक गांव के लिए ही फेमस नहीं है। यह धार्मिक कारणों से भारत में घूमने के लिए सबसे रहस्यमय स्थानों में से एक है। आप जब भी इस गांव में जाएंगे आपको इस गांव में हर घर, स्कूल और यहां की बैंक में भी ताला नहीं लगाया जाता। हर दरवाजा सुबह से लेकर पूरी रात तक, 12 महीने खुले रहते हैं। बता दें, ग्रामीणों की भगवान शनि में अटूट आस्था है और उनका मानना है कि गांव में जो शून्य अपराध दर है, वो सब उन्हीं की कृपा की वजह से है।
पश्चिमी घाट की समृद्ध खूबसूरती के अलावा, यहां कई आकर्षक चीजें हैं, जो लोगों को बेहद पसंद आती हैं। लेकिन इडुक्की, या 'लाल क्षेत्र', भारत में रहस्यमय स्थानों में से एक के रूप में भी प्रसिद्ध है। इडुक्की में लाल रंग की बारिश पहली बार 25 जुलाई, 2001 को हुई थी। इस बारिश को 2 महीने तक इसी रंग में देखा गया था। इस रंग की वजह से कपड़े और इमारत सब कुछ इसी कलर में हो गए थे। जब इस बारिश का पानी स्थानीय लोगों द्वारा इकठ्ठा की गई तो, ऊपर साफ पानी तैरने लगा और नीचे लाल कण दिखने लगे। वैज्ञानिकों को भी इस बात की आजतक स्पष्ट रूप से जानकारी नहीं मिल पाई।
असम का जतिंगा एक छोटा और खूबसूरत गांव है, लेकिन इस सुंदर गांव में कई बार दुखद घटना देखी गई है। यह दुर्लभ घटना इस गांव को भारत की सबसे रहस्यमयी जगह बनाती है। मानसून में प्रवासी पक्षी यहां उड़ते हुए आते हैं, और पेड़ों, खम्बों और इमारतों से जमीन पर अचानक से गिरने लगते हैं। जटिंगा भारत में घूमने के लिए उन अजीब जगहों में से एक है जो हर साल सितंबर और अक्टूबर के दौरान खूब सारे मरे हुए पक्षियों में बदल जाती है।
8 वीं शताब्दी की ये खूबसूरत संरचना, बड़ा इमामबाड़ा, अरबी और यूरोपीय वास्तुकला के मिश्रण के साथ, भारत के सबसे रहस्यमय ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। इस स्मारक का केंद्रीय धनुषाकार हॉल लगभग 50 मीटर लंबा और लगभग 3 मंजिला ऊंचा है, लेकिन जानकारी हैरानी होगी कि ये हॉल बिना किसी खंभे के खड़ा हुआ है। मुख्य हॉल अपनी अनोखी भूलभुलैया के लिए भी प्रसिद्ध है।
18 वीं शताब्दी की ये खूबसूरत संरचना, बड़ा इमामबाड़ा, अरबी और यूरोपीय वास्तुकला के मिश्रण के साथ, भारत के सबसे रहस्यमय ऐतिहासिक स्थानों में से एक है। इस स्मारक का केंद्रीय धनुषाकार हॉल लगभग 50 मीटर लंबा और लगभग 3 मंजिला ऊंचा है, लेकिन जानकारी हैरानी होगी कि ये हॉल बिना किसी खंभे के खड़ा हुआ है। मुख्य हॉल अपनी अनोखी भूलभुलैया के लिए भी प्रसिद्ध है।
भारत में एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल, लेपाक्षी अपनी वास्तुकला और चित्रकला के लिए जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अपने प्रसिद्ध लटके स्तंभ के कारण भारत के सबसे रहस्यमय स्थानों में से एक है। इस जगह पर मौजूद 70 खंभों में से एक खंभा हवा के बीच में लटका हुआ है, यानी बिना सहारे के ज्यों का त्यों है। लोग मंदिर में आते हैं और खंभे के नीचे कपड़ा पास करते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से जीवन में समृद्धि आती है।

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2022

चंपारण से ही महात्मा गांधी का देश की राजनीति में हुआ था उदय....

 राजकुमार शुक्ल के प्रयासों का ही नतीजा था कि गांधीजी साल 1917 में चंपारण आए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में आजमाए सत्याग्रह और अहिंसा के अपने अस्‍त्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण में ही किया। इस आंदोलन ने 135 सालों से शोषित चंपारण के किसानों को मुक्त किया। यह गांधी का देश की राजनीति में धमाकेदार उदय हुआ। 

गांधी के महात्‍मा तक के सफर का पहला स्‍टेशन था बिहार का चंपारण

 यह बात उस समय की है, जब मोहनदास करमचंद गांधी  दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे। दक्षिण अफ्रीका में किए गए उनके आंदाेलन की गूंज तो थी, लेकिन भारत में अभी वे महात्‍मा  या बापू नहीं थे। उनकी मोहनदास करमचंद गांधी से महात्‍मा गांधी व बापू तक का सफर अप्रैल 1917 में शुरू हुआ, जिसका पहला स्‍टेशन बिहार का चंपारण  था। इस यात्रा की शुरुआत चंपारण के एक किसान राजकुमार शुक्‍ल ने कराई, जिसका निमित्‍त नील किसानों पर अंग्रेजों के अत्‍याचार का तीनकठिया कानून बना। साल 1915 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। पराधीन भारत में उनकी दिलचस्पी देख उनके राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले ने उन्हें भारत भ्रमण की सलाह दी। गोखले ने गांधी में भविष्‍य का बड़ा नेता देख लिया था। वे समझते थे कि भारत को लेकर गांधी के किताबी में जमीनी समझ भी जरूरी है।साल 1916 के गांधी कांग्रेस के अधिवेशन के लिए लखनऊ पहुंचे थे। वहां चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल भी पहुंचे थे। राजकुमार शुक्‍ल ने गांधी को चंपारण के किसानों के दुख-दर्द से अवगत कराते हुए वहां चलने का आग्रह किया। उन्‍होंने बताया कि चंपारण के किसानों पर तीनकठिया कानून के माध्‍यम से अंग्रेज किस तरह जुल्‍म कर रहे थे। अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ के 'नील के दाग' वाले अध्याय में गांधी लिखते हैं कि लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन के पहले तक वे चंपारण का नाम तक नहीं जानते थे। वहां नील की खेती और इस कारण वहां के हजारों किसानों के कष्ट की भी कोई जानकारी नहीं थी। गांधी लिखते हैं कि राजकुमार शुक्ल नाम के चंपारण के एक किसान ने वहां उनका पीछा पकड़ा और वकील बाबू (उस वक्‍त बिहार के नामी वकील और जयप्रकाश नारायण के ससुर ब्रजकिशोर प्रसाद) के बारे में कहते कि वे सब हाल बता देंगे। साथ हीं चंपारण आने का निमंत्रण देते।नेपाल सीमा से सटे बिहार के चंपारण में उस वक्‍त अंग्रेजों ने हर बीघे में तीन कट्ठे जमीन पर अंग्रेजों के लिए नील की अनिवार्य खेती का 'तिनकठिया कानून' लागू कर रखा था। बंगाल के अलावा यहीं नील की खेती होती थी। इसके बदले किसानों को कुछ नहीं मिलता था। इतना ही नहीं, किसानों पर कई दर्जन अलग-अलग कर भी लगाए गए थे। चंपारण के समृद्ध किसान राजकुमार शुक्ल इस शोषण के खिलाफ उठ खड़े हुए। इसके लिए अंग्रेजों ने उन्‍हें कई तरह से प्रताडि़त किया। वे चाहते थे कि गांधी जी यहां आकर अंग्रेजों के अत्‍याचार के खिलाफ ने लोगों को एकजुट करें।राजकुमार शुक्ल के प्रयासों का ही नतीजा था कि गांधीजी साल 1917 में चंपारण आए। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में आजमाए सत्याग्रह और अहिंसा के अपने अस्‍त्र का भारत में पहला प्रयोग चंपारण में ही किया। इस आंदोलन ने 135 सालों से शोषित चंपारण के किसानों को मुक्त किया। यह गांधी का देश की राजनीति में धमाकेदार उदय हुआ। इसके साथ देश को एक नया नेता मिला तो नई तरह की अहिंसक राजनीति भी मिली। जैसे गंगा का उद्गम गंगोत्री से हुआ है, ठीक वैसे हीं गांधी से बापू और महात्मा बनने के सफर का पहला स्टेशन ही चंपारण है। अब कुछ बात राजकुमार शुक्ल की भी। 23 अगस्त 1875 को बिहार के पश्चिमी चंपारण में जन्‍में राजकुमार शुक्‍ल चंपारण के एक बड़े किसान थे। अधिक पढ़े-लिखे नहीं होने तथा सामाजिक लोगों में भी बहुत उठ-बैठ नहीं रहने के बावजूद किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। गांधी को देश की राजनीति में स्‍थापित करने वाले चंपारण अत्‍याग्रह के आयोजन में उनका अहम योगदान रहा, लेकिन इतिहास ने उनके साथ न्‍याय नहीं किया। वे केवल आजादी के सिपाहियों की लिस्ट में एक नाम भर बनकर रह गए हैं। भारत की स्‍वतंत्रता के पहले हीं 20 मई 1929 को मोतिहारी में उनकी मृत्यु हो गई। बाद में भारत सरकार ने उनपर दो स्मारक डाक टिकट भी प्रकाशित किए।


मंगलवार, 18 अक्टूबर 2022

भारत में सबसे ज्यादा किले कौन से राज्य में है?

भारत के लगभग प्रत्येक राज्य में क़िले मौजूद हैं। इन किलों में कुछ बड़े ही भव्य है जो आज भी आकर्षण का केंद्र है और भारत में पर्यटन के मुख्य केंद्रों में गिना जाता है। आंकड़ो के अनुसार भारत के अधिकांश राज्यों में मौजूद सभी छोटे-बड़े किले को मिलाकर कुल 571 किले मौजूद हैं। राजस्थान और महाराष्ट्र दो ऐसे राज्य हैं, जहां सबसे अधिक किले हैं। आज हम ऐसे ही भारत के कुछ आलीशान और एतिहासिक किलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो देश की शान हैं। इसमें पहला है, राजस्थान के जोधपुर शहर में स्थित मेहरानगढ़ किला। यह 500 साल से भी ज्यादा पुराना और काफी बड़ा है।

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2022

इस किले के लिए हुआ था भीषण युद्ध, बही थी खून की नदियां

 राजस्थान भौगोलिक कारणों से सदैव राजाओं के लिए केंद्र बिंदु रहा है। यहां की वादियों में आलौकिक शक्तियां तो हैं ही। मिट्टी में खजाने और कई रहस्य छुपे हुए हैं। यहां के किले और महल भी अपनी दास्तां बयां करने में पीछे नहीं है। हम बात कर रहे हैं चित्तौड़ किले की। इतिहासकारों के अनुसार सातवीं शताब्दी में मौर्य वंशीय राजा चित्रांगद ने अपने नाम पर चित्रकूट किला बनवाया था। प्राचीन सिक्कों पर एक तरफ चित्रकूट नाम अंकित मिलता है। इससे पता चलता है कि इस किले का नाम चित्रकूट था जो बाद में चित्तौड़ के नाम से जाना जाने लगा।

वास्तव में इस दुर्ग का निर्माण अभी भी विस्मय व रोमांच से भरा पड़ा है। इस किले के बारे में कई किवंदतियां हैं। कहा जाता है कि पांडवों के दूसरे भाई भीम ने इसे करीब 5000 वर्ष पूर्व बनवाया था। एक बार भीम जब संपति की खोज में निकला तो उसे रास्ते में एक योगी निर्भयनाथ व एक यति कुकड़ेश्वर से भेंट हुई। भीम ने योगी से पारस पत्थर मांगा, जिसे योगी इस शर्त पर देने को राजी हुआ कि वह इस पहाड़ी स्थान पर रातों-रात एक दुर्ग निर्माण करवा दें। अगर ऐसा होता है तो वह उसे पारस पत्थर दे देगा।

...आखिर क्यों इस गांव में मां के नाम से जाने जाते हैं बच्चे

हम जिस देश में रहते हैं वहां की संस्कृति और समाज सेक्स जैसे विषय पर खुलकर बात नहीं करती हैं। और जो इंसान इस पर खुलकर बोलता है उसे ही बेशर्म की संज्ञा दे दी जाती है। खासकर हमारे देश में माता-पिता भी इस बारे में बच्चों से कभी कोई बात करना पसंद नहीं करते हैं और न चाहते हैं कि इस तरह की बातें उनके बच्चे उनसे इस विषय पर कुछ पूछे। भारत ही नहीं विश्व के कई देश शादी से पहले शारीरिक संबंधों को सही नहीं मानते हैं। लेकिन आपको सुनकर हैरत होगी कि भारत में भी एक ऐसा राज्य है जहां के बच्चे मां के नाम से जाने जाते हैं। राजस्‍थान के जैसलमेर में "नगर वधुओं" एक ऐसा गांव है। यहां की युवतियां शादी से पहले ही कई लोगों से शारीरिक संबंध बनाती है। ऐसी सूरत में बच्चे को अपने पिता का नाम पता नहीं होता है। सुनने में भले ही ये अजीब लग रहा है, लेकिन यहां की ये परंपरा है। यहां शादियों का चलन नहीं है। वहीं विश्व में एक ऐसा भी देश है जहां पर लड़की का पिता ही उससे कहता है कि वो जाकर लड़कों से मिले और अच्छा लगे तो उसके साथ रिलेशन बना लें। यह प्रथा कंबोडिया के आदिवासी समुदाय का है।

 एक ऐसा गांव जहां पिता बनाता है बेटी से संबंध

पिता ही तैयार करता है बेटी के लिए झोपड़ी: शादी से पहले युवतियां पिता के कहने पर शारीरिक संबंध बनाती है। कंबोडिया के आदिवासी समुदाय में यह एक प्रथा है। प्रथा के मुताबिक जैसे ही किसी युवती को मासिक धर्म आना शुरू हो जाता है तो उसे जवान मान लिया जाता है। इसके बाद पिता अपनी बेटी के लिए एक झोपड़ी तैयार करता है। इसे लव हट कहा जाता है। जिसमें लड़की आदिवासी समुदाय के लड़कों से मिलती है और अच्छा लगने पर संबंध बना लेती है। इसके बाद भी लड़की को लड़का सही नहीं लगता है तो वह उससे शादी नहीं करती है। लड़की फिर से झोपड़ी में दूसरे लड़के को बुलाती है। यह सिलसिला तब तक चलता है जब तक कि लड़की को सही लड़का न मिल जाए। इसके बाद ही उसकी शादी उस लड़के से कर दी जाती है। इस तरह से एक बाप अपनी ही बेटी को कहता है कि वो एक से ज्यादा लड़कों के साथ रिलेशन बनाए। 


गर्भधारण होने पर भी लड़कियां नहीं करती है शादी:

लड़कियां रिलेशन बनाने से पहले किसी तरह का गर्भनिरोधक वस्तु का इस्तेमाल नहीं करती है। ऐसे में अगर कोई लड़की गर्भवती हो जाती है और उसे वह पंसद नहीं करती है तो वह उससे शादी नहीं करती है। गर्भधारण के बावजूद लड़की जिसे पसंद करती है उससे शादी करके बच्चे को पिता के नाम से जोड़ देती है। इस गांव सिर्फ महिलाएं और बच्चे हैं:नगर बंधुओं का एक ऐसा गांवजहां बसती हैं सिर्फ महिलाएं और उनके मासूम बच्चे। ऐसे बच्चे जो अपने बाप के नाम से नहीं बल्कि अपनी मां के नाम से जाने जाते हैं, स्कूल में भी इनके नाम के आगे मां का नाम ही लिखा हुआ है। यह गांव है राजस्थान के बाड़मेर जिले का सांवरड़ा गांव। इस गांव में साटिया जाति के करीब 70 परिवार निवास करते हैं। गांव में 132 नगर बधुएं और लगभग 45 बच्चे हैं जो गांव के प्राथमिक स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। गांव की महिलाएं अपना और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए शारीरिक संबंध बनाती है

 इस गांव में सदियों से शादी का चलन नहीं है: 

इस गांव में शादी की कोई खास परंपरा नहीं है। यहां बिना शादी के ही युवतियां शारीरिक संबंध बनती हैं। यही कारण है कि गांव के बच्चे अपनी मां के नाम से जाने जाते हैं। एक एनजीओ की मदद से चार साल पहले गांव में पहली बारात आई थी तब यह निर्णय लिया गया कि बहुओं को दूसरे से शारीरिक संबंध नहीं बनाने दिया जाएगा। यह संबंध पहले समाज में थी भी जायज:युवतियों का शादी नहीं करना और एक से अधिक कई से शारीरिक संबंध बनाना समाज में जायज था। लेकिन बदलते दौर ने इस परंपरा को वेश्यावृत्ति में बदल दिया। इस वजह से यहां की युवतियों को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है। इतना ही नहीं युवतियों को अपने इस धंधे की कमाई का कुछ भाग टैक्स के रूप में भी अदा करना पड़ता था। 

कैसे शुरू हुई ये परंपरा: 

यह परंपरा 2500 साल पहले की है। जब भारत पर मौर्य वंश का राज था। तब युवतियां शादी से पूर्व ही शारीरिक संबंध बनाती थी। वे एक से अधिक लड़कों से इस तरह के संबंध रखती थी। ऐसा करना उनकी परंपरा में था। पुरुष इसके एवज में खूब धन-दौलत देते थे। ऐसा कहा जा सकता है कि युवतियों से देहव्यापार कराया जाता था। नगर के लोगों के द्वारा प्राप्त धन से इन युवतियों का कोषालय हमेशा भरा रहता था। इनकी इस कमाई का कुछ भाग राजकोष में कर के रूप में जमा कराया जाता था जिसका उपयोग राजा द्वारा अपने राज्य की भलाई में किया जाता था।

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भानगढ़ का खंडहर बताते हैं गुलजार था कभी यहां...


भानगढ़ नगर में प्रवेश करते ही सबसे पहले बाजार पड़ता है। वह बाजार जो उस जमाने में गुलजार रहा करता होगा। आज वीरान और खंडहर में तब्दील है। बाजार में बनी दुकानों की दीवारों से छत कुछ इस तरह गिरी कि लगता ही नहीं इनके ऊपर कभी कुछ था भी। देखकर अहसास होता है मानों किसी ने तलवार से इन्हें इकसार काट दिया है या इन्हें बनाया ही इस तरह गया है। कहते हैं नगर में बने नर्तकी महल से रात को घुंघुरुओं की आवाजें आती हैं। वैसे आपको बता दें कि जाने-माने वास्तुविद् ने जब यहां का परीक्षण किया तो बताया कि इस जगह बड़ी मात्रा में चमगादर और कक्रोच हैं जिसकी वजह से रात में ऐसी ध्वनि सुनाई देती हैं जैसे घुंघुरु बज रहे हों यानी उन्होंने रूहानी ताकतों की बजाय वास्तु और इन नकारात्मकता बढ़ाने वाली चीजों को यहां डर की वजह बताया।यह तो हुआ भानगढ़ का उपलब्ध इतिहास। अब बात करते हैं कि क्या वाकई यहां पर भूत हैं? क्या सचमुच यहां आत्माएं भटकती हैं? इन सवालों के साथ सुपरनैचरल पावर्स पर काम करने वाले और पैरानॉर्मल इंवेस्टिगेटर इस जगह जा चुके हैं। इनमें से कई लोगों ने यहां पर नेगेटिव एनर्जी की प्रेजेंस को स्वीकारा है। कई इंवेस्टिगेटर्स के कैमरे में कुछ अजीब तस्वीरें कैद भी हुई हैं, लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि ये कोई भूत है। उनका कहना है कि जब तक रिसर्च पूरी नहीं हो जाती वह ऐसा कुछ नहीं कह सकते।अगर भूत नहीं है तो फिर यह नेगेटिव एनर्जी क्या हो सकती है? इस पर कुछ पैरानॉर्मल इंवेस्टिगेटर्स का जवाब होता है कि ऐसी एनर्जी जो लंबे समय से एक ही जगह पर अटकी हुई हो, जिसका किसी कारण फ्लो नहीं हो पा रहा हो, नेगेटिव एनर्जी कहलाती है। साइंस कभी यह नहीं कहती कि भूत हैं, लेकिन वह भूतों के अस्तित्व को नकारती भी नहीं है। पैरानॉर्मल ऐक्टिविस्ट का कहना है कि साइंस के इस रवैये के पीछे कारण यह है कि साइंस के पास भूतों के न होने के सबूत भूतों के होने के सबूत से ज्यादा हैं। ऐसे में खास बात यह है कि साइंस के पास भी इस बात के सबूत हैं कि भूत होते हैं। भले ही ये अभी कम हैं। इस स्टोरी में हम किसी भी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं, बस उपलब्ध तथ्यों के आधार पर बात कर रहे हैं।