भानगढ़ नगर में प्रवेश करते ही सबसे पहले बाजार पड़ता है। वह बाजार जो उस जमाने में गुलजार रहा करता होगा। आज वीरान और खंडहर में तब्दील है। बाजार में बनी दुकानों की दीवारों से छत कुछ इस तरह गिरी कि लगता ही नहीं इनके ऊपर कभी कुछ था भी। देखकर अहसास होता है मानों किसी ने तलवार से इन्हें इकसार काट दिया है या इन्हें बनाया ही इस तरह गया है। कहते हैं नगर में बने नर्तकी महल से रात को घुंघुरुओं की आवाजें आती हैं। वैसे आपको बता दें कि जाने-माने वास्तुविद् ने जब यहां का परीक्षण किया तो बताया कि इस जगह बड़ी मात्रा में चमगादर और कक्रोच हैं जिसकी वजह से रात में ऐसी ध्वनि सुनाई देती हैं जैसे घुंघुरु बज रहे हों यानी उन्होंने रूहानी ताकतों की बजाय वास्तु और इन नकारात्मकता बढ़ाने वाली चीजों को यहां डर की वजह बताया।यह तो हुआ भानगढ़ का उपलब्ध इतिहास। अब बात करते हैं कि क्या वाकई यहां पर भूत हैं? क्या सचमुच यहां आत्माएं भटकती हैं? इन सवालों के साथ सुपरनैचरल पावर्स पर काम करने वाले और पैरानॉर्मल इंवेस्टिगेटर इस जगह जा चुके हैं। इनमें से कई लोगों ने यहां पर नेगेटिव एनर्जी की प्रेजेंस को स्वीकारा है। कई इंवेस्टिगेटर्स के कैमरे में कुछ अजीब तस्वीरें कैद भी हुई हैं, लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि ये कोई भूत है। उनका कहना है कि जब तक रिसर्च पूरी नहीं हो जाती वह ऐसा कुछ नहीं कह सकते।अगर भूत नहीं है तो फिर यह नेगेटिव एनर्जी क्या हो सकती है? इस पर कुछ पैरानॉर्मल इंवेस्टिगेटर्स का जवाब होता है कि ऐसी एनर्जी जो लंबे समय से एक ही जगह पर अटकी हुई हो, जिसका किसी कारण फ्लो नहीं हो पा रहा हो, नेगेटिव एनर्जी कहलाती है। साइंस कभी यह नहीं कहती कि भूत हैं, लेकिन वह भूतों के अस्तित्व को नकारती भी नहीं है। पैरानॉर्मल ऐक्टिविस्ट का कहना है कि साइंस के इस रवैये के पीछे कारण यह है कि साइंस के पास भूतों के न होने के सबूत भूतों के होने के सबूत से ज्यादा हैं। ऐसे में खास बात यह है कि साइंस के पास भी इस बात के सबूत हैं कि भूत होते हैं। भले ही ये अभी कम हैं। इस स्टोरी में हम किसी भी तरह के अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं, बस उपलब्ध तथ्यों के आधार पर बात कर रहे हैं।
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