जैसलमेर। पद्मावती जैसलमेर की राजकुमारी थी न कि श्रीलंका की। इसका दावा वरिष्ठ इतिहासकार नंदकिशोर शर्मा ने किया है। उन्होंने कहा पद्मावती को जैसलमेर की राजकुमारी हैं। इसके तथ्य भी दिए हैं। शर्मा का दावा है कि
पद्मावती उर्फ पद्मिनी श्रीलंका की नहीं, जैसलमेर के निर्वासित महारावल
पुण्यपाल की राजकुमारी थी। सिंहल लोद्रवा के महारावल बाछू के दूसरे पुत्र
सिंहराव ने सिंध के रोहड़ी वर्तमान में पाकिस्तान से 8 कोस की दूरी पर
सिंहरार नामक कस्बा को भाटियों ने आबाद किया था।
जैसलमेर के सेवग लक्ष्मीचंद की तवारिख पृष्ठ संख्या 26 के अनुसार सिंहरावों ने 24 गांव आबाद कर खेरात में सइयदों को दिया था। वह आज तक उनके पास है। सिंहराव भाटियों के इस कस्बे को सिहर कहा जाता था। सिहर ही सिंहल जो सिंघल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस क्षेत्र पर भाटियों के पूर्वजों का अधिकार था। भाटी सिद्ध रावल देवराज ने यहां पर विक्रम संवत 909 में देरावलगढ़ और राजधानी बनाया था।
गोरा और बादल पद्मिनी के चचेरे नहीं बल्कि ममेरे भाई थे
- मलिक मोहम्मद जायसी ने भी सिंहल लिखा है। 1955 में राजऋषि उम्मेदसिंह राठौड़ ने लिखा है कि राणा रतनसिंह का विवाह सिंहल देश की राजकुमारी पद्मिनी के साथ हुआ था। चित्तौड़ की माटी पर सन 1302 में रतनसिंह का विवाह पद्मिनी के साथ हुआ। पद्मिनी की मां चौहान थी व पिता भाटी थे। गोरा और बादल उसके चचेरे नहीं, बल्कि ममेरे भाई थे।
- पद्मिनी के पिता ने मेवाड़ के चित्तौड़ राणा रतनसिंह के पिता समरसिंह की आज्ञा से डोला भेजकर रतनसिंह से पद्मिनी का विवाह किया था। पुण्यपाल निर्वासित थे।
- ऐसी स्थिति में परम पद्मिनी का विवाह करना बड़ा कठिन हो गया था। उस समय अलाउद्दीन खिलजी हिंदू राजकुमारियों व रानियों का अपहरण कर रहे थे। ऐसी स्थिति में पूंगल के सिंहल क्षेत्र के भाटियों ने डोला भेजकर पद्मिनी का विवाह 1302 ईस्वी में रतनसिंह से करवाया था।
इतिहासकारों का दावा:
- पद्मावती को श्रीलंका की राजकुमारी बताने, रतनसिंह का उनको देखकर पद्मिनी पर मोहित होने, फिर उनसे विवाह का प्रस्ताव करने आदि जो दृश्य संजय लीला भंसाली द्वारा पद्मावती फिल्म में फिल्माये है, वे सभी तथ्य गलत और इतिहास से परे हैं।
- यहां के इतिहासकारों के अनुसार पूंगल गढ़ की पद्मिनी पूंगल क्षेत्र के सिंहल क्षेत्र की रहने वाली भाटियों की राजकुमारी थी। पद्मिनी जिसका पूंगल क्षेत्र में जन्म हुआ था। इसी कारण लोग उसे पूंगल की पद्मिनी कहते हैं। राजस्थान में कई लोक गीतों में पद्मिनी की उपमाएं दी जाती है। यदि वह लंका की होती, तो उसे श्याम वर्णी या श्याम सुंदरी कहा जाता।
रानी पद्मिनी का जैसलमेर से था संबंध
- इतिहासकार बालकृष्ण जोशी के मुताबिक, इतिहास के आधार पर यह बात बिलकुल सही है कि चितौडग़ढ़ की रानी पद्मिनी का जैसलमेर से संबंध था। मैने अपनी पुस्तक ‘स्वर्ण दुर्ग की आत्मकथा’ में भी इस बात का उल्लेख किया है। जैसलमेर के संस्थापक रावल जैसल के वंशज थे पुण्यपाल जिनका विवाह सिरोही के चौहान परिवार में हुआ था।
- पुण्यपाल को जैसलमेर की राजगद्दी से पदच्युत कर दिया था। इसके बाद वे जगह जगह भटके उसके बाद में पूंगल पर अधिकार प्राप्त किया। इसके बाद पद्मिनी के जन्म के समय पुण्यपाल पूंगल के रावल थे। उन्हीं की बेटी पद्मिनी थी। जिनका विवाह 15 साल की आयु में चितौडग़ढ़ के रावल रतनसिंह से विवाह किया गया।
- चितौडग़ढ़ की रानी पद्मिनी जैसलमेर मूल के भाटियों की बेटी तथा सिंहल के पहले सामंत व बाद में राजा की दोहित्री थी। जिसे पूंगल की पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है।
- पद्मिनी बेहद गुणवान और सुंदर औरत थी। औरत की सुंदरता को चार वर्णों में विभाजित किया जाता है। जो औरत नाक, नक्श, रूप, गुण रूप होती है उसे भी पद्मिनी की ही संज्ञा दी जाती है। पद्मिनी की संज्ञा भी चितौडग़ढ़ की रानी के नाम के आधार पर ही दी जाती है।
इतिहास के कई दोहों में पद्मिनी का वर्णन
शिक्षाविद् हरिवल्लभ बोहरा का कहना है कि हम लोग यह बात बचपन से जनश्रुति के रूप में सुनते आ रहे है कि पद्मिनी जैसलमेर मूल की थी। इनके पिता निष्कासित होने के बाद पूंगल के राजा बने। जैसलमेर की तवारिख में भी इस बात का जिक्र है। जैसलमेर के इतिहास के कई दोहों में पद्मिनी का वर्णन है।
जैसलमेर के सेवग लक्ष्मीचंद की तवारिख पृष्ठ संख्या 26 के अनुसार सिंहरावों ने 24 गांव आबाद कर खेरात में सइयदों को दिया था। वह आज तक उनके पास है। सिंहराव भाटियों के इस कस्बे को सिहर कहा जाता था। सिहर ही सिंहल जो सिंघल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस क्षेत्र पर भाटियों के पूर्वजों का अधिकार था। भाटी सिद्ध रावल देवराज ने यहां पर विक्रम संवत 909 में देरावलगढ़ और राजधानी बनाया था।
गोरा और बादल पद्मिनी के चचेरे नहीं बल्कि ममेरे भाई थे
- मलिक मोहम्मद जायसी ने भी सिंहल लिखा है। 1955 में राजऋषि उम्मेदसिंह राठौड़ ने लिखा है कि राणा रतनसिंह का विवाह सिंहल देश की राजकुमारी पद्मिनी के साथ हुआ था। चित्तौड़ की माटी पर सन 1302 में रतनसिंह का विवाह पद्मिनी के साथ हुआ। पद्मिनी की मां चौहान थी व पिता भाटी थे। गोरा और बादल उसके चचेरे नहीं, बल्कि ममेरे भाई थे।
- पद्मिनी के पिता ने मेवाड़ के चित्तौड़ राणा रतनसिंह के पिता समरसिंह की आज्ञा से डोला भेजकर रतनसिंह से पद्मिनी का विवाह किया था। पुण्यपाल निर्वासित थे।
- ऐसी स्थिति में परम पद्मिनी का विवाह करना बड़ा कठिन हो गया था। उस समय अलाउद्दीन खिलजी हिंदू राजकुमारियों व रानियों का अपहरण कर रहे थे। ऐसी स्थिति में पूंगल के सिंहल क्षेत्र के भाटियों ने डोला भेजकर पद्मिनी का विवाह 1302 ईस्वी में रतनसिंह से करवाया था।
इतिहासकारों का दावा:
- पद्मावती को श्रीलंका की राजकुमारी बताने, रतनसिंह का उनको देखकर पद्मिनी पर मोहित होने, फिर उनसे विवाह का प्रस्ताव करने आदि जो दृश्य संजय लीला भंसाली द्वारा पद्मावती फिल्म में फिल्माये है, वे सभी तथ्य गलत और इतिहास से परे हैं।
- यहां के इतिहासकारों के अनुसार पूंगल गढ़ की पद्मिनी पूंगल क्षेत्र के सिंहल क्षेत्र की रहने वाली भाटियों की राजकुमारी थी। पद्मिनी जिसका पूंगल क्षेत्र में जन्म हुआ था। इसी कारण लोग उसे पूंगल की पद्मिनी कहते हैं। राजस्थान में कई लोक गीतों में पद्मिनी की उपमाएं दी जाती है। यदि वह लंका की होती, तो उसे श्याम वर्णी या श्याम सुंदरी कहा जाता।
रानी पद्मिनी का जैसलमेर से था संबंध
- इतिहासकार बालकृष्ण जोशी के मुताबिक, इतिहास के आधार पर यह बात बिलकुल सही है कि चितौडग़ढ़ की रानी पद्मिनी का जैसलमेर से संबंध था। मैने अपनी पुस्तक ‘स्वर्ण दुर्ग की आत्मकथा’ में भी इस बात का उल्लेख किया है। जैसलमेर के संस्थापक रावल जैसल के वंशज थे पुण्यपाल जिनका विवाह सिरोही के चौहान परिवार में हुआ था।
- पुण्यपाल को जैसलमेर की राजगद्दी से पदच्युत कर दिया था। इसके बाद वे जगह जगह भटके उसके बाद में पूंगल पर अधिकार प्राप्त किया। इसके बाद पद्मिनी के जन्म के समय पुण्यपाल पूंगल के रावल थे। उन्हीं की बेटी पद्मिनी थी। जिनका विवाह 15 साल की आयु में चितौडग़ढ़ के रावल रतनसिंह से विवाह किया गया।
- चितौडग़ढ़ की रानी पद्मिनी जैसलमेर मूल के भाटियों की बेटी तथा सिंहल के पहले सामंत व बाद में राजा की दोहित्री थी। जिसे पूंगल की पद्मिनी के नाम से भी जाना जाता है।
- पद्मिनी बेहद गुणवान और सुंदर औरत थी। औरत की सुंदरता को चार वर्णों में विभाजित किया जाता है। जो औरत नाक, नक्श, रूप, गुण रूप होती है उसे भी पद्मिनी की ही संज्ञा दी जाती है। पद्मिनी की संज्ञा भी चितौडग़ढ़ की रानी के नाम के आधार पर ही दी जाती है।
इतिहास के कई दोहों में पद्मिनी का वर्णन
शिक्षाविद् हरिवल्लभ बोहरा का कहना है कि हम लोग यह बात बचपन से जनश्रुति के रूप में सुनते आ रहे है कि पद्मिनी जैसलमेर मूल की थी। इनके पिता निष्कासित होने के बाद पूंगल के राजा बने। जैसलमेर की तवारिख में भी इस बात का जिक्र है। जैसलमेर के इतिहास के कई दोहों में पद्मिनी का वर्णन है।
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