बुधवार, 22 नवंबर 2017

आखिर कैसी थी पद्मावती? जानिए चित्तौड़ की रानी के 9 गुणों के बारे में

जयपुर। रानी पद्मावती को लेकर अलग-अलग मत हैं। अभी तक यही माना जाता रहा है कि पद्मावती का उल्लेख सबसे मलिक मोहम्मद जायसी ने अपनी रचना पद‌्मावत में किया था। लेकिन, इतिहास में इसके अलावा भी कुछ और है। कई तथ्यों को खोजने के बाद इतिहासकार पद्मावती को कोरी कल्पना नहीं मान रहे हैं।
मीरा शोध संस्थान से जुड़े चितौड़गढ़ के प्रो. सत्यनारायण समदानी बताते हैं कि जायसी की रचना 1540 की है। जायसी सूफी विचारधारा के थे, जो अजमेर दरगाह आया करते थे। इसी दौरान उन्होंने कवि बैन की कथा को सुना, जिसमें पद्मावती का उल्लेख था। इसका मतलब साफ है कि जायसी से पहले कवि हेतमदान की गोरा बादल कविता से भी जायसी ने अंश लिए थे।
क्या हकीकत में थी रानी
छिताई चरित : जायसी की पद्‌मावत से 14 साल पहले लिखी
प्रो.समदानी बताते हैं कि छिताई चरित ग्वालियर के कवि नारायणदास की रचना थी। इस हस्तलिखित ग्रंथ के संपादक ग्वालियर के हरिहरनाथ द्विवेदी आैर इनके अलावा अगरचंद नाहटा ने भी इसका रचनाकाल 1540 से पहले का माना है। अलाउदीन खिलजी देवगिरी पर आक्रमण किया था। वह वहां की रानी को पाना चाहता था। इस ग्रंथ के एक काव्य अंश में उल्लेख बताया गया है कि देवगिरी पर आक्रमण के समय अलाउद्‌दीन राघव चेतन को कहा है कि वह कहता है कि मैंने चित्तौड़ में पद्मावती के होने की बात सुनी। उवहां के राजा रतनसिंह को बंदी बनााया, लेकिन बादल उसे छुड़ा ले गया।
जायसी ने भी नहीं माना प्रेम प्रसंग, लिखा
पद्मावती बहुत सुंदर थीं, खिलजी बहक गया... सूफीकवि मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 ईस्वी में पद्मावत काव्य लिखा। जिसका अधिकांश किताबों में जिक्र आता है, लेकिन घटनाचक्र के सवा दो सौ साल बाद बाद काव्य रूप में लिखे जाने से कई लोग इसमें सच्चाई के साथ कल्पना का समावेश मानते हैं। उसने लिखा कि पद्मावती सुंदर थी। अल्लाउद्दीन ने उनके बारे में सुना तो देखना चाहा। खिलजी सेना ने चित्तौड़ को घेर लिया। रतन सिंह के पास संदेश भिजवाया- पद्मावती से मिलवाओ तो बिना हमला किए चितौड़ छोड़ दूंगा। रतन सिंह ने पद्मावती को बताया। रानी सहमत नहीं थीं। अंत में जौहर कर लिया।
पदमावती के 9 गुण
बुद्धिमानी
पंडित राघव को देश निष्कासन का दंड दिया था। तब रानी पद्मिनी राघव को अपना कंगन देती हैं। क्योंकि राघव पंडित गुणी विद्वान अनेक विधाओं के स्वामी थे। उन्होंने गुणी ब्राह्मण का अपमान नहीं किया।
वीरांगना
पद्मिनी वीर क्षत्राणी थी। वे गोरा-बादल के वीरत्व से परिचित थीं। इसी से उन्हें प्रेरणा देकर उनके वीरत्व को जागृत कर पति की बंधनमुक्ति और अपने सतीत्व की रक्षा का भार उन्हें सौंपती है।
नेतृत्व
रानियां महलों से बाहर नहीं आती थीं। पद्मिनी दरबार में युद्ध रणनीति बनाने में शामिल हुईं। रतनसिंह बंदी बना लिए तो युद्ध का नेतृत्व किया गढ़ में किसी भी परिस्थिति में उत्सर्ग के लिए तैयार रहने को प्रेरित किया।
रणनीतिकार
खिलजी के रणथंभौर पर आक्रमण के बाद मेवाड़ पर हमले की आशंका भांपकर रतनसिंह ने सभी सामंतों को बुलाकर युद्व की तैयारी शुरू कर दी थी। रानी भी इस रणनीति में शामिल थीं।
सतीत्व की रक्षा
पद्मिनी हिंदू नारी के गौरव का प्रतीक है। रतनसिंह को बंदी अवस्था में देवपाल और अल्लाउद्दीन के भेजे दूत की परीक्षा की अग्नि में तपकर उसका सतीत्व अखंड हो गया।
आदर्श पत्नी
मलिक मोहम्मद जायसी ने रानी पद्मिनी की जीवन को आधार बनाकर पद्मावत महाकाव्य की रचना की। जायसी ने आदर्श पत्नी के रूप में स्थापित किया। पद्मिनी भावी पति रतनसिंह से भेंट होने से लेकर जीवन पर्यंत उनके प्रति समर्पित रही।
स्वाभिमानी
पद्मिनी स्वाभिमानी नारी हैं। संकट में वे घबराई नहीं। पति की बंधन अवस्था में जब चित्तौड़ के सामंत और कुंवर उसे सुल्तान को सौंपकर राजा को छुड़ाने की योजना बनाते हैं तो वह अपनी बुद्धि से सफल योजना बनाती हैं।
निर्णय क्षमता
वे रणनीतिक निर्णय भी करती थीं। जब सुल्तान राणा रतनसिंह को बंदी बना ले गया तो पद्मिनी ने ही अपने विश्वस्त गोरा बादल से राय की। फिर 1600 बंद पालकियों में योद्धा बैठे। खबर फैलाई कि पद्मिनी सखियों के साथ रही हैं। सुल्तान से प्रार्थना की वे रानी को रतनसिंह से अंतिम भेंट करने दें। इससे प्रसन्न होकर सुल्तान ने आज्ञा दे दी। सैनिक रतनसिंह को छुड़ा लिया।
पवित्रता

पद्मिनी स्वयं में कुशल रणनीतिकार, साहसी और रूपवती होने के साथ पतिव्रता थीं। उनके सारे फैसले कदम इसी से प्रेरित थे। इतिहासकारों के मुताबिक उनके साहस की कहानी यह है कि आक्रांता अलाऊदीन खिलजी के महल में आने से पहले जौहर की तैयारी कर ली।



  • रणनीतिकार
    खिलजी के रणथंभौर पर आक्रमण के बाद मेवाड़ पर हमले की आशंका भांपकर रतनसिंह ने सभी सामंतों को बुलाकर युद्व की तैयारी शुरू कर दी थी। रानी भी इस रणनीति में शामिल थीं।
    सतीत्व की रक्षा
    पद्मिनी हिंदू नारी के गौरव का प्रतीक है। रतनसिंह को बंदी अवस्था में देवपाल और अल्लाउद्दीन के भेजे दूत की परीक्षा की अग्नि में तपकर उसका सतीत्व अखंड हो गया।

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