जयपुर। यूं तो भारत में हनुमानजी के लाखों मंदिर हैं। हर मंदिर
पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है, पर राजस्थान के दौसा जिला स्थित घाटा
मेंहदीपुर बालाजी की बात ही अलग है। मेंहदीपुर बालाजी को दुष्ट आत्माओं से
छुटकारा दिलाने के लिए दिव्य शक्ति से प्रेरित हनुमानजी का बहुत ही
शक्तिशाली मंदिर माना जाता है। यहां कई लोगों को जंजीर से बंधा और उलटे
लटके देखा जा सकता है। यह मंदिर और इससे जुड़े चमत्कार देखकर कोई भी हैरान
हो सकता है। शाम के समय जब बालाजी की आरती होती है तो भूत-प्रेत से पीड़ित
लोगों को जूझते देखा जाता है।
जंजीर में बांधकर लाए जाते हैं पीड़ित
कहा जाता है कि कई सालों पहले हनुमानजी और प्रेत राजा अरावली पर्वत पर
प्रकट हुए थे। बुरी आत्माओं और काले जादू से पीड़ित रोगों से छुटकारा पाने
लोग यहां आते हैं। इस मन्दिर को इन पीड़ाओं से मुक्ति का एकमात्र मार्ग
माना जाता है। मंदिर के पंडित इन रोगोंं से मुक्ति के लिए कई उपचार बताते
हैं। शनिवार और मंगलवार को यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच
जाती है। कई गंभीर रोगियों को लोहे की जंजीर से बांधकर मंदिर में लाया
जाता है। यहां आने वाले पीडित लोगों को देखकर सामान्य लोगों की रूह तक कांप
जाती है। ये लोग मंदिर के सामने ऐसे चिल्ला-चिल्ला के अपने अंदर बैठी बुरी
आत्माओं के बारे में बताते हैं, जिनके बारे में इनका दूर-दूर तक कोई
वास्ता नहीं रहता है। भूत-प्रेत ऊपरी बाधाओं के निवारणार्थ यहां आने वालों
का तांता लगा रहता है। ऐसे लोग यहां पर बिना दवा और तंत्र-मंत्र के स्वस्थ
होकर लौटते हैं।
बादशाहों ने मूर्ति को नष्ट करने की थी कोशिश
कहा जाता है कि मुस्लिम शासनकाल में कुछ बादशाहों ने इस
मूर्ति को नष्ट करने का प्रयास किया। हर बार ये बादशाह असफल रहे। वे इसे
जितना खुदवाते गए मूर्ति की जड़ उतनी ही गहरी होती चली गई। थक हार कर
उन्हें अपना यह कुप्रयास छोड़ना पड़ा। ब्रिटिश शासन के दौरान सन 1910 में
बालाजी ने अपना सैकड़ों वर्ष पुराना चोला स्वतः ही त्याग दिया। भक्तजन इस
चोले को लेकर समीपवर्ती मंडावर रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहां से उन्हें चोले
को गंगा में प्रवाहित करने जाना था। ब्रिटिश स्टेशन मास्टर ने चोले को
निःशुल्क ले जाने से रोका और उसका लगेज करने लगा, लेकिन चमत्कारी चोला कभी
मन भर ज्यादा हो जाता और कभी दो मन कम हो जाता। असमंजस में पड़े स्टेशन
मास्टर को अंततः चोले को बिना लगेज ही जाने देना पड़ा और उसने भी बालाजी के
चमत्कार को नमस्कार किया। इसके बाद बालाजी को नया चोला चढ़ाया गया। एक बार
फिर से नए चोले से एक नई ज्योति दीप्यमान हुई।
प्रेतराज सरकार और कोतवाल कप्तान के मंदिर
बालाजी महाराज के अलावा यहां श्री प्रेतराज सरकार और श्री
कोतवाल कप्तान ( भैरव) की मूर्तियां भी हैं। प्रेतराज सरकार जहां
दंडाधिकारी के पद पर आसीन हैं। वहीं, भैरव जी कोतवाल के पद पर। यहां आने पर
ही मालूम चलता है कि भूत और प्रेत किस तरह से मनुष्य को परेशान करते हैं।
दुखी व्यक्ति मंदिर में आकर तीनों देवगणों को प्रसाद चढाना पड़ता है।
बालाजी को लड्डू प्रेतराज सरकार को चावल और कोतवाल कप्तान (भैरव) को उड़द
का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस प्रसाद में से दो लड्डू रोगी को खिलाए जाते
हैं। शेष प्रसाद पशु पक्षियों को डाल दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पशु
पक्षियों के रूप में देवताओं के दूत ही प्रसाद ग्रहण कर रहे होते हैं। कुछ
लोग बालाजी का नाम सुनते ही चैंक पड़ते हैं। उनका मानना है कि भूतप्रेतादि
बाधाओं से ग्रस्त व्यक्ति को ही वहां जाना चाहिए। ऐसा सही नहीं है। कोई भी
व्यक्ति जो बालाजी के प्रति भक्तिभाव रखता है , इन तीनों देवों की आराधना
कर सकता है। अनेक भक्त तो देश-विदेश से बालाजी के दरबार में मात्र प्रसाद
चढ़ाने नियमित रूप से आते हैं।
प्रसाद खाते ही झूमने लगते हैं पीड़ित लोग
प्रसाद का लड्डू खाते ही रोगी व्यक्ति झूमने लगता है। भूत
प्रेतादि स्वयं ही उसके शरीर में आकर चिल्लाने लगते हैं। कभी वह अपना सिर
धुनता है कभी जमीन पर लोटने लता है। पीड़ित लोग यहां पर अपने आप जो करते
हैं वह एक सामान्य आदमी के लिए संभव नहीं है। इस तरह की प्रक्रियाओं के बाद
वह बालाजी की शरण में आ जाता है फर उसे हमेशा के लिए इस तरह की परेशानियों
से मुक्ति मिल जाती है। बालाजी महाराज के मंदिर में प्रातः और सायं लगभग
चार चार घंटे पूजा होती है।
श्री प्रेतराज सरकार
बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं।
प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को
दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। भक्तिभाव
से उनकी आरती , चालीसा, कीर्तन, भजन आदि किए जाते हैं। बालाजी के सहायक
देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। प्रेतराज सरकार
को पके चावल का भोग लगाया जाता है। भक्तजन प्रायः तीनों देवताओं को बूंदी
के लड्डुओं का ही भोग लगाते हैं।
कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव
कोतवाल कप्तान श्री भैरव देव भगवान शिव के अवतार हैं और उनकी
ही तरह भक्तों की थोड़ी-सी पूजा-अर्चना से ही प्रसन्न भी हो जाते हैं। भैरव
महाराज चतुर्भुजी हैं। उनके हाथों में त्रिशूल , डमरू, खप्पर तथा प्रजापति
ब्रह्मा का पांचवां कटा शीश रहता है। वे कमर में बाघाम्बर नहीं , लाल
वस्त्र धारण करते हैं। वे भस्म लपेटते हैं। उनकी मूर्तियों पर चमेली के
सुगंध युक्त तिल के तेल में सिन्दूर घोलकर चोला चढ़ाया जाता है।
इसलिए कहा जाता है कोतवाल कप्तान
शास्त्र और लोक कथाओं में भैरव देव के अनेक रूपों का वर्णन
है, जिनमें एक दर्जन रूप प्रामाणिक हैं। श्री बाल भैरव और श्री बटुक भैरव,
भैरव देव के बाल रूप हैं। भक्तजन प्रायः भैरव देव के इन्हीं रूपों की
आराधना करते हैं। भैरव देव बालाजी महाराज की सेना के कोतवाल हैं। इन्हें
कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। बालाजी मन्दिर में आपके भजन, कीर्तन, आरती
और चालीसा श्रद्धा से गाए जाते हैं। प्रसाद के रूप में आपको उड़द की दाल के
वड़े और खीर का भोग लगाया जाता है। किन्तु भक्तजन बूंदी के लड्डू भी चढ़ा
दिया करते हैं । सामान्य साधक भी बालाजी की सेवा-उपासना कर भूतप्रेतादि
उतारने में समर्थ हो जाते हैं। इस कार्य में बालाजी उसकी सहायता करते हैं।
वे अपने उपासक को एक दूत देते हैं , जो नित्य प्रति उसके साथ रहता है।
No Deposit Bonus 2021 | Free Spins No Deposit
जवाब देंहटाएंBest No Deposit Casinos — No Deposit Bonus Codes — This 슈어맨 page lists 도박사이트 no 라이브스코어 deposit bonuses sbobet as 슬롯머신사이트 a type of bonus that is offered by a casino. What is a No