शुक्रवार, 27 मार्च 2015

न ही बादशाह अकबर और न अंग्रेज जान पाए इन 9 दैविक ज्वालाओं का राज

जयपुर। भारत ही क्या पूरे विश्व में पृथ्वी के गर्भ से ज्वाला निकलना वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला तो कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है।
लेकिन नवरात्रों के पावन अवसर पर आपको आज बताने जा रहे हैं एक ऐसे मंदिर के बारे में जिसे हिमालय की गोद में पंजाब और हिमाचल के महाराजाओं ने बनवाया। इस मंदिर में प्राकृतिक रूप से निकलने वाली ज्वालाओं का रहस्य न तो बादशाह अकबर जान पाए थे और न ही अंग्रेज। अाजादी के बाद भी भूगर्भ विज्ञानियों से राज को जानने की कोशिश की लेकिन विफल हुए।
भूगर्भ से निकलने वाली ज्वाला को इस्तेमाल करना चाहते थे अंग्रेज
हिमाचल के कांगड़ा जिला के ज्वाला मां के इस मंदिर में निकलने वाली ज्वाला चमत्कारिक है। ब्रितानी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अंदर से निकलती इस ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए, लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस भूगर्भ से निकलती इस ज्वाला का पता नहीं कर पाए कि यह आखिर इसके निकलने का कारण क्या है। वहीं इतिहास इस बात का भी गवाह है कि अकबर द ग्रेट लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा न पाया।
भूगर्भ विज्ञानी सात दशकों से बैठे हैं तंबू गाड़ कर
यही नहीं पिछले सात दशकों से भूगर्भ विज्ञानी इस क्षेत्र में तंबू गाड़ कर बैठे हैं, वह भी इस ज्वाला की जड़ तक नहीं पहुंच पाए। यह सब बातें यह सिद्ध करती हैं की यहां ज्वाला प्राकृतिक रूप से ही नहीं चमत्कारी रूप से भी निकलती है, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता।
पृथ्वी के गर्भ से निकल रही है 9 ज्वालाएं
यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही 9 ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और हिमाचल के राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। यही वजह है कि इस मंदिर में हिंदुओं और सिखों की साझी आस्था है।
यहां है यह चमत्कारिक ज्वाला मां का मंदिर
ज्वालामुखी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर है। ज्वालामुखी मंदिर को जोतां वाली का मंदिर भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।
बादशाह अकबर ज्वालाओं को बुझाने के लिए खुदवा दी थी नहर
बादशाह अकबर ने इस मंदिर के बारे में सुना तो वह हैरान हो गया 7 उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। मंदिर में जलती हुई ज्वालाओं को देखकर उसके मन में शंका हुई। उसने अपनी सेना को मंदिर में जल रही ज्वालाओं पर पानी डालकर बुझाने के आदेश दिए। लाख कोशिशों के बाद भी अकबर की सेना मंदिर की ज्वालाओं को बुझा नहीं पाई। देवी मां की अपार महिमा को देखते हुए
उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर देवी मां के दरबार में चढ़ाया, लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आज भी बादशाह अकबर का यह छतर ज्वाला देवी के मंदिर में पड़ा है।
गोरख डिब्बी का चमत्कारिक स्थान
मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एवं भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाएं हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्ज्वलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। थोड़ा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। कहते हैं की यहां गुरु गोरखनाथ पधारे थे और कई चमत्कार दिखाए थे। यहां पर आज भी एक पानी का कुण्ड है जो देखने मे खौलता हुआ लगता है पर वास्तव मे पानी ठंडा है। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढ़ी हुई है।

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