जयपुर। दुर्गा मां के कई रूप और अवतार हैं। हमारे देश में दुर्गा मां को
शक्ति की देवी के रूप में पूजा जाता है। यही वजह है कि पूरे भारत में
नवरात्र के अवसर पर माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती
है। ऐसे मंदिर के बारे
में बताने जा रहा हूं, जिसे मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना तोडऩे पहुंची तो
मधुमक्खियों (भंवरों) ने उन पर हमला कर दिया।
लोक मान्यता के अनुसार एक बार मुगल बादशाह औरंगजेब ने राजस्थान के
सीकर में स्थित जीण माता और भैरों के मंदिर को तोडऩे के लिए अपने सैनिकों
को भेजा। जब यह बात स्थानीय लोगों को पता चली तो बहुत दुखी हुए। बादशाह के
इस व्यवहार से दुखी होकर लोग जीण माता की प्रार्थना करने लगे। इसके बाद जीण
माता ने अपना चमत्कार दिखाया और वहां पर मधुमक्खियों के एक झुंड ने मुगल
सेना पर धावा बोल दिया।
मधुमक्खियों के काटे जाने से बेहाल पूरी सेना घोड़े और मैदान छोड़कर
भाग खड़ी हुई। कहते है कि स्वयं बादशाह की हालत बहुत गंभीर हो गई तब बादशाह
ने अपनी गलती मानकर माता का अखंड ज्योत जलाने का वचन दिया और कहा कि वह हर
महीने सवा मन तेल इस ज्योत के लिए भेंट करेगा। इसके बाद औरंगजेब की तबीयत
में सुधार होने लगा।
पहले दिल्ली से फिर जयपुर से बादशाह भिजवाता रहा तेल
कहते हैं कि बादशाह ने कई सालों तक तेल दिल्ली से भेजा। फिर जयपुर से
भेजा जाने लगा। औरंगजेब के बाद भी यह परंपरा जारी रही और जयपुर के महाराजा
ने इस तेल को मासिक के बजाय वर्ष में दो बार नवरात्र के समय भिजवाना आरंभ
कर दिया। महाराजा मान सिंह जी के समय उनके गृह मंत्री राजा हरी सिंह अचरोल
ने बाद में तेल के स्थान पर नगद 20 रु. तीन आने प्रतिमाह कर दिए, जो निरंतर
प्राप्त होते रहे।
भाई के स्नेह पर लगी थी जीण माता और उनकी भाभी में शर्त
ऐसा माना जाता है कि जीण माता का जन्म चौहान वंश के राजपूत परिवार में हुआ था। वह अपने भाई से बहुत स्नेह करती थीं।
माता जीण अपनी भाभी के साथ तालाब से पानी लेने गई। पानी लेते समय भाभी
और ननद में इस बात को लेकर झगड़ा शुरू हो गया कि हर्ष किसे ज्यादा स्नेह
करता है। इस बात को लेकर दोनों में यह निश्चय हुआ कि हर्ष जिसके सिर से
पानी का मटका पहले उतारेगा वही उसका अधिक प्रिय होगा। भाभी और ननद दोनों
मटका लेकर घर पहुंची लेकिन हर्ष ने पहले अपनी पत्नी के सिर से पानी का मटका
उतारा। यह देखकर जीण माता नाराज हो गई।
बहन को मनाने निकले हर्ष, नहीं मानी तो खुद की भैरों की तपस्या
नाराज होकर वह अरावली के काजल शिखर पर पहुंच कर तपस्या करने लगीं।
तपस्या के प्रभाव से राजस्थान के चुरु में ही जीण माता का वास हो गया। अभी
तक हर्ष इस विवाद से अनभिज्ञ था। इस शर्त के बारे में जब उन्हें पता चला तो
वह अपनी बहन की नाराजगी को दूर करने उन्हें मनाने काजल शिखर पर पहुंचे और
अपनी बहन को घर चलने के लिए कहा लेकिन जीण माता ने घर जाने से मना कर दिया।
बहन को वहां पर देख हर्ष भी पहाड़ी पर भैरो की तपस्या करने लगे और
उन्होंने भैरो पद प्राप्त कर लिया।
एक हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है जीण माता का मंदिर
जीण माता का वास्तविक नाम जयंती माता है। माना जाता है कि माता दुर्गा
की अवतार है। घने जंगल से घिरा हुआ है यह मंदिर तीन छोटी पहाड़ी के संगम
पर स्थित है। इस मंदिर में संगमरमर का विशाल शिव लिंग और नंदी प्रतिमा
आकर्षक है। इस मंदिर के बारे में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर
भी कहते हैं की माता का मंदिर 1000 साल पुराना है। लेकिन कई इतिहासकार
आठवीं सदी में जीण माता मंदिर का निर्माण काल मानते हैं।
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