सोमवार, 5 मई 2014

सत्ता के लालच में जसवंत सिंह ने चली थी चाल, प्रधान को बनाया जिंदा भूत


हम जब राजस्थान की बात करते हैं तो हमारे जेहन में कई चित्र उभर कर आते हैं, जैसे सुन्दर महल, ऊंट की शाही सवारी, वीरों की गाथाएं, रोमांटिक कहानियां और आकर्षक विरासत। राजस्थान का इतिहास जितना वैभवपूर्ण है, उतना ही गौरवशाली भी। एक तरफ जहां राजाओं ने अपनी रियासत के लिए जान की परवाह तक नहीं की और किले के साम्राज्य के लिए अपने आप को भी दांव पर लगाया वहीं कुछ राजा और महाराजा ऐसे भी हुए जिन्होंने सत्ता की लालच में अपनों को ही मौत के घाट उतारने की कोशिश की। 
राजस्थान के एक ऐसे महाराजा की कहानी जिसे रानी ने महल से भगाया तो दूसरे शासक के अधीन हो गया। फिर सत्ता के लालच में अपने ही प्रधान को बना डाला जिंदा भूत। 
जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह राजस्थान के इतिहास के प्रसिद्ध व्यक्ति रहे है। जब तक जसवंत सिंह जीवित थे, तब तक औरंगजेब मंदिर तोडऩा तो दूर जजिया कर (एक तरह का धार्मिक कर) भी नहीं ले पाए थे। एक बार जब वो युद्ध में घायल होकर राजस्थान लौटे तो उनकी रानी ने यह कहकर महल के दरवाजे बंद कर दिए कि युद्ध से हारकर जीवित आए राजा के लिए किले में कोई जगह नहीं होती। हालांकि वे औरंगजेब के अधीन थे लेकिन औरंगजेब उनसे हमेशा डरता था। 
भारतीय इतिहास का प्रसिद्ध वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ भी इन्ही महाराजा का सेनापति था। दुर्गादास के अलावा सरदारों में एक और जोरदार सामंत थे ठाकुर राजसिंह जी। वो जोधपुर में महाराजा जसवंत सिंह के प्रधान भी थे और मारवाड़ राज्य के सबसे ज्यादा प्रभावशाली सरदार थे। राज्य में उनके प्रभाव व उनकी मजबूत स्थिति होने के कारण महाराजा जसवंत सिंह हमेशा उनके प्रति सशंकित रहते थे। कारण था औरंगजेब की कूटनीति व कुटिल राजनीति। जसवंत सिंह राजसिंह को अपने रास्ते से हटाने के नई तरकीब सोचने लगे।
दरअसल, औरंगजेब महाराजा जसवंत सिंह से मन ही मन बहुत जलता था और महाराजा के खिलाफ हमेशा षड्यंत्र रचता रहता था। अत: महाराजा को लगता था कि कहीं औरंगजेब ठाकुर राजसिंह जी को कभी अपनी कूटनीति का हिस्सा ना बना लें। इसलिए जसवंत सिंह जी ठाकुर राजसिंह जी को मरवाना चाहते थे।
राजा का हर आदेश मानना होता था चाहे वो जहर पीने को ही क्यों न कहे, जसवंत सिंह ने भी यही चाल चली
जब जसवंत सिंह को कोई उपाय नहीं सुझा तो उन्होंने ठाकुर राजसिंह को जहर दे कर मरवाना चाहा। उस जमाने में हुक्म के साथ किसी को भी जहर का प्याला भेज उसे पीने हेतु बाध्य करने का रिवाज चलन में था। लेकिन राजसिंह जी जैसे प्रभावशाली व वीर के साथ ऐसा करना महाराजा जसवंतसिंह जी के लिए बहुत कठिन था। एक दिन पता चला कि महाराजा जसवंतसिंह पेट दर्द को लेकर बहुत तड़प रहे हैं। कई वैद्यों ने उनका इलाज किया पर कोई कारगर साबित नहीं हुआ। महाराजा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पुरे शहर में महाराजा की बीमारी के चर्चे शुरू हो गए।

भूत भगाने को होने लगे जतन, बुलाए गए बड़े-बड़े तांत्रिक
कोई कहे काबुल के थाने पर रात को गस्त करते हुए महाराजा का सामना भूतों से हुआ था और तब से भूत उनके पीछे पड़े हैं। पूरे शहर में जितने लोग, उतनी बातें। सारे शहर में भय छा गया। उधर महाराजा का इलाज करने के लिए वैध तरह-तरह की जड़ी बूटियां घोटने में लगे। कोई मन्त्र बोलने में लगा था तो कोई झाड़ फूंक करने में व्यस्त थे। प्रजा मंदिरों में बैठ अपने राजा के लिए भगवान से दुवाएं मांगने में लगे थे। ब्राह्मण राजा की सलामती के लिए यज्ञ करने लगे थे। लेकिन, ये सभी कोशिश बेकार दिख रही थीं। उधर महाराजा दर्द के मारे ऐसे तड़प रहे थे जैसे कबूतर फडफड़ा रहा हो। सभी लोग दुखी थे।
प्रेत का साया बताकर फंसाया अपने चाल में
आखिर में खबर आई कि एक बहुत बड़े बाबा आए हैं। उन्होंने महाराजा की बीमारी की जांच कर कहा- "महाराजा के पीछे बहुत शक्तिशाली प्रेत लगा है। वह बिना बलि लिए नहीं जायेगा। महाराजा को ठीक करना है तो किसी दूसरे की बलि देनी होगी। मैं मंत्र बोलकर जो पानी राजा के माथे से उतारूंगा उस पानी में राजाजी का भूत बाहर आ जाएगा और वह उस पानी को पीने वाले पर चला जाएगा।" इतना सुनते ही वहां उपस्थित पचासों हाथ खड़े हो गए- "महाराजा की प्राण रक्षा के लिए हम अपनी बलि देंगे। आप मंत्र बोल पानी उतारिये उसे हम पियेंगे।"
बाबा हंसते हुए बोले- "आम लोगों से काम नहीं चलेगा। महाराजा के बदले किसी महाराजा सरीखे व्यक्ति की बलि देनी होगी। शेर की जगह शेर ही चाहिए। छोटी-मोटी बलि से ये प्रेत संतुष्ट होने वाला नहीं।"
"इस राज्य में महाराजा सरीखे तो ठाकुर राजसिंह जी ही है।" सोचती हुई भीड़ में से एक आदमी ने कहा और सैकडों आंखें राजसिंह जी की और ताकने लगी। इस समय मना करना कायरता और हरामखोरी का पक्का प्रमाण था, सो राजसिंह जी उठे और बोले- "हाजिर हूं! बाबा जी महाराज आप अपने मंत्र बोलकर अपना टोटका पूरा कीजिये।" बाबा ने पानी भरा एक प्याला लेकर मंत्र बुदबुदाते हुए उस प्याले को महाराजा के शरीर पर घुमाया और प्याला ठाकुर राजसिंह जी के हाथ में थमा दिया।
राजसिंह खुशी खुशी पी गए जहर का प्याला
महाराजा का अभिवादन कर ठाकुर राजसिंह बोले- "मैं जानता हूं इसमें क्या है! आपको इतना बड़ा नाटक रचने की क्या जरुरत थी? ये प्याला आप वैसे ही भेज देते, मैं ख़ुशी ख़ुशी पी जाता।"
अपनी प्रधानगी का पट्टा महाराजा की ओर फेंक कर जहर का वह प्याला एक घूंट में पीते हुए राजसिंह जी ने बोलना जारी रखा- "ये प्रधानगी आपकी नजर है। आगे से मेरे खानदान में कोई आपका प्रधान नहीं बनेगा। मैंने तन मन से आपकी चाकरी की और उसका फल मुझे ये मिला।" यह कहते कहते जहर के कारण राजसिंह जी की आंखें फिरने लगी वे जमीन पर गिर गए।
जयसिंह के भूत का भय पूरे शहर में फैल गया
राजसिंह को तुरंत उनकी हवेली लाया गया। सारे शहर में बात आग की तरह फैल गयी- "आसोप ठाकुर साहब राजसिंह जी का प्रेत की बली चढ़ गए और राजाजी (जसवंत सिंह) उठ बैठे।" उसके बाद राजसिंह जी की प्रेत योनी में जाकर भूत बनने की बातें पूरे शहर में फैल गयी। जितने लोग उतनी कहानियां। कोई उनके द्वारा परचा देने की कहानी सुनाता, कोई हवेली में अब भी उनकी आवाज आने की कहानी कहता, कोई उनके द्वारा हवेली में हुक्का गड्गुड़ाने की आवाज सुनने के बारे में बाते बताता। इस तरह यह भय पूरे शहर में फैल गया। लोगों का रात में सोना मुश्किल हो गया। 
जहर पीने के बाद भी सात साल तक जिन्दा रहे जयसिंह जी
कुछ लोगों को तो राजसिंह का प्रेत हवेली खिड़कियों से इधर उधर घूमता भी नजर आया, किसी को उनका प्रेत डराए तो किसी को बख्शीस भी देता था। जितने लोग उतनी बातें। लेकिन यहां बात कुछ और ही थी। दरअसल, ठाकुर राजसिंह जी मरे नहीं थे वे जहर को पचा गए। जहर पीने के बाद उन्हें आसोप हवेली के एक महल में महाराजा जसवंत सिंह ने नजर बंद करवा दिया था। इस घटना के बाद वे सात वर्ष तक जिन्दा रहे। इसीलिए कभी हवेली में वे लोगो को हुक्का गुडगुडाते नजर आ जाते तो कभी महल से उनके खंखारे सुनाई दे जाते। 
आज भी लोगों को भूतों आहटें सुनाई देती हैं
कभी कभी महल की उपरी मंजिल में घूमते हुए वे लोगों को किसी खिड़की से नजर आ जाते और उनको देखने वाले लोग डर के मारे उनसे मन्नते मांगते, चढ़ावा चढ़ाते। इस तरह महाराजा जसवंत सिंह जी ने ऐसा नाटक रचा कि ठाकुर राजसिंह जी को जिन्दा रहते ही भूत बना दिया। महाराजा ने लोगों के मन ऐसा विश्वास पैदा कर दिया कि अभी तक आसोप हवेली के पड़ोसी लोग राजसिंह जी के प्रेत को देखने की बाते यदा कदा करते रहते है।

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