गुरुवार, 15 मई 2014

राजस्थान में है सबसे शक्तिशाली तोप, जहां इसका गोला गिरा वहां आज तालाब है

जयपुर. पुराने जमाने में खुद को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका होता था कि किसी मजबूत किले के अंदर रहा जाए। राजा-महाराजा लोग किले के अंदर महल बनवाते थे, जो दुश्मन के हमले से उन्हें बचाते थे। बारूद और तोप की खोज के बाद मजबूत किले भी सुरक्षित नहीं रहे। हमलावर सेना तोप के गोलों से किसी भी किले को ढहा देती थी। ऐसे में शासकों के बीच सबसे ताकतवर तोप पाने की होड़ लगी रहती थी। 

सबसे ताकतवर और भारी तोप

राजस्थान के जयगढ़ के किले में रखे गए तोप की गिनती पुराने समय के सबसे ताकतवर और भारी तोपों में की जाती है। 1720 ई. में महाराजा सवाई जय सिंह ने इसे रायगढ़ के किले में लगवाया था। 50 टन वजनी इस तोप के बैरल की लंबाई 20 फीट है और बैरल का व्यास 11 इंच है।

35 किलोमीटर तक मार करने वाले इस तोप को एक बार फायर करने के लिए 100 किलो गन पाउडर की जरूरत होती थी। अधिक वजन के कारण इसे किले से बाहर नहीं ले जाया गया और न ही कभी युद्ध में इसका इस्तेमाल किया गया था। इस तोप को सिर्फ एक बार टेस्ट के लिए चलाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि किले से दक्षिण की ओर 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तालाब उसी टेस्ट फायर के गोले के गिरने से बना था।
दुनिया की सबसे लंबी बंदूक

बंदूक के आविष्कार के साथ ही गोली को ज्यादा से ज्यादा दूरी तक सटीक मार करने लायक बनाना चुनौती थी। शुरुआत में लोगों ने जाना कि गन के बैरल की लंबाई अधिक होने पर गोली ज्यादा दूरी तक सटीक मार करती है। इसके बाद लंबी बैरल वाली बंदूकें सामने आईं। जयगढ़ के किले में रखी गई बंदूक उसी समय की है। इस बंदूक को दुनिया की सबसे लंबी बंदूकों में गिना जाता है।
 
ऊंट की पीठ पर बांधी जाने वाली तोप

किले की रक्षा में तैनात ताकतवर और भारी तोपों का तभी इस्तेमाल होता था, जब कोई दुश्मन हमला करे। दूसरे राज्य पर हमला करने  के लिए इन भारी-भरकम तोपों को युद्ध भूमि तक ले जाना काफी कठिन था। इसी दौर में छोटे और हल्की तोपें बनाई गईं। इन तोपों को हाथी या ऊंट की पीठ पर बांधा जा सकता था। जयगढ़ के किले में रखी गई इस छोटी तोप को भी ऊंट की पीठ पर बांध कर चलाया जाता था। ईसा पूर्व से ही चीन के लोगों को बारूद की जानकारी थी। प्राचीन काल में बारूद का इस्तेमाल किसी जगह पर तेजी से आग फैलाने के लिए किया जाता था। 13वीं शताब्दी में लोगों को यह पता चला की बारूद के इस्तेमाल से किसी भारी चीज को दूर तक फेंका जा सकता है। इसके बाद दो तरह की तोपें बनाई गई। पहली भारी और लंबी नालवाली और दूसरी छोटी नालवाली। 15वीं शताब्दी में हाथ में लेकर चलाने वाली तोपें भी बनाई गई थी, बात में बंदूकों ने इनका स्थान ले लिया।
 
पहले तोप से फेंके जाते थे पत्थर
 
शुरुआत में तोपों का इस्तेमाल पत्थरों को फेंकने के लिए किया जाता था। ये तोपें पहले तांबे और कांसे की बनीं फिर लोहे की बनने लगीं। 15वीं शताब्दी में तोपें 30 इंच परिधि की होती थीं और 1,200 से 1,500 पाउंड भार के पत्थर के गोले चलाती थीं। लोहे की तोपें आने के बाद लोगों ने देखा की पत्थर की जगह लोहे के गोले से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सकता है। इसके बाद तोपों में लोहे के गोलों का इस्तेमाल किया जाने लगा और बैरल का व्यास कम हो गया।

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