
पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करने वाला राजस्थान खुद में कई रोचक तथ्य छुपाए हुए है। यहां पर बने किलों का इतिहास हजारों साल पुराना है। माना जाता है कि महाभारत के पात्र भीम ने यहां करीब 5000 वर्ष पूर्व एक किले का निर्माण करवाया था। उसका नाम था 'चित्तौड़गढ़ का किला'। चित्तौड़गढ़ का किला भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है। राजस्थान के माटी के लाल महाराणा प्रताप ने दिल्ली के बादशाह अकबर के साथ महीनों तक इस किले में युद्ध लड़ा। अंतत: महाराणा प्रताप को वहां की जनता के लिए चितौड़गढ़ छोड़कर वर्षों तक जंगलों व पहाड़ों में विस्थापित जीवन जीना पड़ा।
इस किले में कई सुंदर मंदिरों के साथ-साथ रानी पद्मिनी और महाराणा
कुम्भ के शानदार महल हैं। चित्तौड़गढ़ किला राजपूत शौर्य के इतिहास में
गौरवपूर्ण स्थान रखता है। यह किला 7वीं से 16वीं शताब्दी तक सत्ता का एक
महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। लगभग 700 एकड़ के क्षेत्र में फैला यह किला
500 फुट ऊंची पहाड़ी पर खड़ा है। यह माना जाता है कि 7वीं शताब्दी में मोरी
राजवंश के चित्रांगद मोरी द्वारा इसका निर्माण करवाया गया था। इस दुर्ग की
विशालता और ऊंचाई को देखते हुए कहा जाता है कि ’चित्तौड़ का दुर्ग पूरा
देखने के लिए पत्थर के पांव चाहिएं।’ इस दुर्ग का विशेष आकर्षण यहां स्थित
सात विशाल दरवाजे हैं।
किले में कई दर्शनीय स्थल हैं। उनमें से एक है रानी पद्मिनी का महल।
यह महल रानी पद्मिनी के साहस और शान की कहानी बताता है। इसकी वास्तुकला
अदभुत है। यहां दीवारों पर किए गए चित्र कला का प्रदर्शन मन को मोह लेने
वाला है। इस महल में एक कमरा ऐसा भी है जिसमें बड़े-बड़े दर्पण (शीशे) लगे
हुए हैं। एक विशाल दर्पण इस तरह से लगा है कि यहां से झील के मध्य बने
जनाना महल की सीढियों पर खड़े किसी भी व्यक्ति का स्पष्ट छवी (प्रतिबिंब) दर्पण में नजर आता है।
एक
छोटा महल पानी के बीच में बना
चौगान के निकट ही एक झील के किनारे रावल रत्नसिंह की रानी पद्मिनी के
महल बने हुए हैं। पद्मिनी महल सुंदर और बहादुर रानी पद्मिनी का घर था। एक
छोटा महल पानी के बीच में बना है, जो जनाना महल कहलाता है व किनारे के महल
मरदाने महल कहलाते हैं। मरदाना महल मे एक कमरे में एक विशाल दर्पण इस तरह
से लगा है कि यहां से झील के मध्य बने जनाना महल की सीढियों पर खड़े किसी भी
व्यक्ति का स्पष्ट प्रतिबिंब दपंण में नजर आता है, परंतु पीछे मुड़कर देखने
पर सीढ़ी पर खड़े व्यक्ति को नहीं देखा जा सकता। माना जाता है कि अलाउद्दीन
खिलजी ने यहीं खड़े होकर रानी पद्मिनी की छवी देखा करता था। दरअसल, रानी के
शाश्वत सौंदर्य से सुलतान अभिभूत हो गया और उसकी रानी को पाने की इच्छा के
कारण अंततः युद्ध हुआ। पास ही भगवान शिव को समर्पित नीलकंठ महादेव मंदिर
है।
गुस्से में एक वीर ने मारी लात और बन गया एक बड़ा तालाब
माना जाता है कि पांडव के दूसरे भाई भीम जब संपत्ति की खोज में निकले
तो रास्ते में उनकी एक योगी से मुलाकात हुई। उस योगी से भीम ने पारस पत्थर
मांगा। इसके बदले में योगी ने एक ऐसे किले की मांग की जिसका निर्माण
रातों-रात हुआ हो।
भीम ने अपने बल और भाइयों की सहायता से किले का काम लगभग समाप्त कर ही दिया था, सिर्फ थोड़ा-सा कार्य शेष था। इतना देख योगी के मन में कपट उत्पन्न हो गया। उसने जल्दी सवेरा करने के लिए यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा। जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया और उसने क्रोध से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी। जहां भीम ने लात मारी वहां एक बड़ा सा जलाशय बन गया। आज इसे 'भीमलात' के नाम से जाना जाता है।
भीम ने अपने बल और भाइयों की सहायता से किले का काम लगभग समाप्त कर ही दिया था, सिर्फ थोड़ा-सा कार्य शेष था। इतना देख योगी के मन में कपट उत्पन्न हो गया। उसने जल्दी सवेरा करने के लिए यति से मुर्गे की आवाज में बांग देने को कहा। जिससे भीम सवेरा समझकर निर्माण कार्य बंद कर दे और उसे पारस पत्थर नहीं देना पड़े। मुर्गे की बांग सुनते ही भीम को क्रोध आया और उसने क्रोध से अपनी एक लात जमीन पर दे मारी। जहां भीम ने लात मारी वहां एक बड़ा सा जलाशय बन गया। आज इसे 'भीमलात' के नाम से जाना जाता है।
महावीर स्वामी का मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है
जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा कुम्भा के राज्यकाल में ओसवाल महाजन गुणराज ने करवाया थ। हाल ही में जीर्ण-शीर्ण अवस्था प्राप्त इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग ने किया है। इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। आगे महादेव का मंदिर आता है। मंदिर में शिवलिंग है तथा उसके पीछे दीवार पर महादेव की विशाल त्रिमूर्ति है, जो देखने में समीधेश्वर मंदिर की प्रतिमा से मिलती है। कहा जाता है कि महादेव की इस विशाल मूर्ति को पाण्डव भीम अपने बाजूओं में बांधे रखते थे।
जैन कीर्ति स्तम्भ के निकट ही महावीर स्वामी का मन्दिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार महाराणा कुम्भा के राज्यकाल में ओसवाल महाजन गुणराज ने करवाया थ। हाल ही में जीर्ण-शीर्ण अवस्था प्राप्त इस मंदिर का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग ने किया है। इस मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है। आगे महादेव का मंदिर आता है। मंदिर में शिवलिंग है तथा उसके पीछे दीवार पर महादेव की विशाल त्रिमूर्ति है, जो देखने में समीधेश्वर मंदिर की प्रतिमा से मिलती है। कहा जाता है कि महादेव की इस विशाल मूर्ति को पाण्डव भीम अपने बाजूओं में बांधे रखते थे।
विजय स्तम्भ
यह स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आप अनुठा है। इसके प्रत्येक मंजिल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है। इसमें भगवानों के विभिन्न रुपों और रामायण तथा महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियां खुदी हैं। कीर्तिस्तम्भ के ऊपरी मंजिल से दुर्ग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों का विहंगम दृश्य दिखता है। बिजली गिरने से एक बार इसके ऊपर की छत्री टूट गई थी, जिसकी महाराणा स्वरुप सिंह ने मरम्मत करायी।
यह स्तम्भ वास्तुकला की दृष्टि से अपने आप अनुठा है। इसके प्रत्येक मंजिल पर झरोखा होने से इसके भीतरी भाग में भी प्रकाश रहता है। इसमें भगवानों के विभिन्न रुपों और रामायण तथा महाभारत के पात्रों की सैकड़ों मूर्तियां खुदी हैं। कीर्तिस्तम्भ के ऊपरी मंजिल से दुर्ग एवं निकटवर्ती क्षेत्रों का विहंगम दृश्य दिखता है। बिजली गिरने से एक बार इसके ऊपर की छत्री टूट गई थी, जिसकी महाराणा स्वरुप सिंह ने मरम्मत करायी।
मिट्टी से बनी चट्टान
किले के अंत में दीवार के 150 फीट नीचे एक छोटी-सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है। यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊंचा उठवाया, ताकि किले पर आक्रमण कर सके। प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी हेतु एक-एक मोहर दी गई थी।
किले के अंत में दीवार के 150 फीट नीचे एक छोटी-सी पहाड़ी (मिट्टी का टीला) दिखाई पड़ती है। यह टीला कृत्रिम है और कहा जाता है कि अकबर ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, तब अधिक उपयुक्त मोर्चा इसी स्थान को माना और उस मगरी पर मिट्टी डलवा कर उसे ऊंचा उठवाया, ताकि किले पर आक्रमण कर सके। प्रत्येक मजदूर को प्रत्येक मिट्टी की टोकरी हेतु एक-एक मोहर दी गई थी।
पाडन पोल
इस किले में नदी के जल प्रवाह के लिए दस मेहरावें बनी हैं, जिसमें नौ के ऊपर के सिरे नुकीले हैं। यह दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है। कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहां तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।
इस किले में नदी के जल प्रवाह के लिए दस मेहरावें बनी हैं, जिसमें नौ के ऊपर के सिरे नुकीले हैं। यह दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है। कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहां तक आ गया था। इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।
सात दरवाजे
पाडन पोल
यह दुर्ग का प्रथम प्रवेश द्वार है। कहा जाता है कि एक बार भीषण युद्ध
में खून की नदी बह निकलने से एक पाड़ा (भैंसा) बहता-बहता यहाँ तक आ गया था।
इसी कारण इस द्वार को पाडन पोल कहा जाता है।
भैरव पोल (भैरों पोल)
पाडन पोल से थोड़ा उत्तर की तरफ चलने पर दूसरा दरवाजा आता है, जिसे भैरव पोल के रुप में जाना जाता है।
हनुमान पोल
दुर्ग के तृतीय प्रवेश द्वार को हनुमान पोल कहा जाता है। क्योंकि पास
ही हनुमान जी का मंदिर है। हनुमान जी की प्रतिमा चमत्कारिक एवं दर्शनीय
हैं।
गणेश पोल
हनुमान पोल से कुछ आगे बढ़कर दक्षिण की ओर मुड़ने पर गणेश पोल आता है, जो दुर्ग का चौथा द्वार है। इसके पास ही गणपति जी का मंदिर है।
जोड़ला पोल
यह दुर्ग का पांचवां द्वार है और छठे द्वार के बिल्कुल पास होने के कारण इसे जोड़ला पोल कहा जाता है।
लक्ष्मण पोल
दुर्ग के इस छठे द्वार के पास ही एक छोटा सा लक्ष्मण जी का मंदिर है जिसके कारण इसका नाम लक्ष्मण पोल है।
राम पोल
लक्ष्मण पोल से आगे बढ़ने पर एक पश्चिमाभिमुख प्रवेश द्वार मिलता है,
जिससे होकर किले के अन्दर प्रवेश कर सकते हैं। यह दरवाजा किला का सातवां
तथा अन्तिम प्रवेश द्वार है। इस दरवाजे के बाद चढ़ाई समाप्त हो जाती है।
00 एकड़ में फैला है यह किला
चित्तौड़गढ़ का किला भारत के सभी किलों में सबसे बड़ा माना जाता है। यह
700 एकड़ में फैला हुआ है। यह किला 3 मील लंबा और आधे मील तक चौड़ा है।
किले के पहाड़ी का घेरा करीब 8 मील का है। इसके चारो तरफ खड़े चट्टान और
पहाड़ थे। साथ ही साथ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए लगातार सात दरवाजे कुछ
अन्तराल पर बनाए गये थे। इन सब कारणों से किले में प्रवेश कर पाना शत्रुओं
के लिए बेहद मुश्किल था।
प्रवेश द्वार
इस किले के सात प्रवेश द्वार हैं। राम पोल, सूरज पोल, भैरव पोल,
हनुमान पोल, गणेश पोल, जोली पोल, और लक्ष्मण पोल। सभी की अलग-अलग विशेषताएं
हैं।
आक्रमण
किले के लंबे इतिहास के दौरान इस पर तीन बार आक्रमण किए गए। पहला
आक्रमण सन 1303 में अलाउद्दीन खलिजी द्वारा, दूसरा सन 1535 में गुजरात के
बहादुरशाह द्वारा तथा तीसरा सन 1567-68 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा किया
गया था। इसकी प्रसिद्ध स्मारकीय विरासत की विशेषता इसके विशिष्ट मजबूत
किले, प्रवेश द्वार, बुर्ज, महल, मंदिर, दुर्ग तथा जलाशय स्वयं बताते हैं
जो राजपूत वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने हैं।
सूर्यकुण्ड (सूरज कुण्ड)
कालिका माता के मंदिर के उत्तर-पूर्व में एक विशाल कुण्ड बना है, जिसे
सूरजकुण्ड कहा जाता है। इस कुण्ड के बारे में मान्यता यह है कि महाराणा को
सूर्य भगवान का आशीर्वाद प्राप्त था तथा कुण्ड से प्रतिदिन प्रातः सफेद
घोड़े पर सवार एक सशस्र योद्धा निकलता था, जो महाराणा को युद्ध में सहायता
देता था।
Manish ji alauddin khilji saw the face of padmini in the mirror because he promised to rana that after seeing the face of padmini I will go back to delhi . u please correct your blog
जवाब देंहटाएंManish ji alauddin khilji saw the face of padmini in the mirror because he promised to rana that after seeing the face of padmini I will go back to delhi . u please correct your blog
जवाब देंहटाएंमनीष जी मैं आपकी इस बात से बिलकुल सहमत नही हूँ जो आपने कहा की अलाउद्दीन रानी पद्मिनी जी को नहाते हुए दर्पण में देखा करता था,आप से अनुरोध है की स्पष्ट करें नही तो अपने कथन में सुधार करें,
जवाब देंहटाएंसही कहा किर्ती जी
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