मंगलवार, 5 मार्च 2013

इस किले को अंग्रेज नहीं कर पाए थे फतह!

राजस्थान का इतिहास जितना वैभवपूर्ण, उतना ही गौरवशाली। यहां के राजाओं ने अपनी रियासत के लिए जान की परवाह तक नहीं की। "भरतपुर का ऐतिहासिक किला" अजेय होने के कारण "लौहगढ़" कहलाता है। सदियों से चली आ रही परंपरा को बरकरार रखने के लिए यहां के राजाओं ने मातृभूमि की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी है। राजाओं ने अपनी शान-ओ-शौकत के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया। ऐसी ही एक रियासत है भरतपुर। इसे राजस्थान का पूर्व सिंहद्वार भी कहा जाता है। यहीं स्थित है यह अजेय दुर्ग। जो फौलादी दृढ़ता के साथ लोहागढ़ के नाम से इतिहास में दर्ज है। जिसपर 13 युद्धों के दौरान दागे गए गोलों का भी कोई असर नहीं हुआ था। यहां जाट राजाओं की हुकूमत थी। जो अपनी दृढ़ता के लिए जाने जाते हैं।

भरतपुर का ऐतिहासिक सफर: राजस्थान की कला-संस्कृति ही नहीं बल्कि इतिहास, भूगोल और समसामयिक दृश्य भी दूसरे राज्यों से अलग है। इतिहासकारों का कहना है कि महाराज सूरजमल सिंह ने 18वीं शताब्दी में भरतपुर को बसाया था। लेकिन एक किवदंती यह भी है कि भगवान राम के छोटे भाई भरत के नाम पर इस नगर का नाम भरतपुर पड़ा। इतिहासकारों का यह भी मनना है कि यहां की जमीन बहुत नीची थी। इसे ऊपर लाने के लिए मिट्टी भरी गई। इसी कारण इसका नाम "भरतपुर" पड़ा।

इस किले के एक कोने पर जवाहर बुर्ज है। यह विजय का प्रतीक है। जाट महाराज द्वारा दिल्ली पर किए गए हमले और उसकी विजय की स्मारक स्वरूप 1765 में बनाया गया था। जबकि दूसरे कोने पर फतह बुर्ज है जो 1805 में अंग्रेजी के सेना के छक्के छुड़ाने और परास्त करने की यादगार है। यहां तक अष्टधातु के दरवाजे जो अलाउद्दीन खिलजी पद्मिनी के चित्तौड़ से छीन कर ले गया था। उसे भरतपुर के राजा दिल्ली से उखाड़ कर ले आए।
मिट्टी से बना हुआ है यह किला:  चारों ओर पानी से भरी हुई खाई है। इस खाई के बाहर मिट्टी का बना किला है। जिसपर अंग्रेजों की सेनाओं ने कई बार तोप के गोले दागे थे। लेकिन इस किले का कुछ नहीं बिगाड़ सके।राजस्थान का इतिहास लिखने वाले अंग्रेज इतिहासकार जेम्स टाड के अनुसार इस किले की सबसे बड़ी खासियत है कि इसकी दीवारें मिट्टी से बनी हुई हैं। इसके बावजूद इस किले को फतह करना लोहे के चने चबाने से कम नहीं था। इसलिए यह किला आज भी अजेय दुर्ग लोहागढ़ के नाम से जाना जाता है। वैसे भरतपुर का पुराना नाम लोहागढ़ ही है।

13 बार किले पर हमला: इतिहासकारों के अनुसार अजेय दुर्ग पर अंग्रेजों ने 13 बार आक्रमण किया था। लेकिन हर बार उन्हें नाकामी ही मिली। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों की सेना बार-बार हारने से हताश हो गई तो वहां से भाग गई। ये भी कहावत है कि भरतपुर के जाटों की वीरता के आगे अंग्रेजों की एक न चली थी।
अंग्रेजी सेनाओं से लड़ते-लड़ते होल्कर नरेश जशवंतराव भागकर भरतपुर आ गए थे। जाट राजा रणजीत सिंह ने उन्हें वचन दिया था कि आपको बचाने के लिए हम सब कुछ कुर्बान कर देंगे। अंग्रेजी सेना के कमांडर इन चीफ लॉर्ड लेक ने भरतपुर के जाट राजा रणजीत सिंह को सूचना दी कि वे जसवंत राव होल्कर को अंग्रेजों के हवाले कर दें। ऐसा नहीं करने पर अंजाम काफी बुरा होगा। यह धमकी जाट राजा के स्वभाव के सर्वथा खिलाफ  थी।

जाट राजा अपनी आन-बान और शान के लिए मशहूर रहे हैं। जाट राजा रणजीत सिंह ने भी लॉर्ड लेक को संदेश भेजा। जिसमें उन्होंने कहा कि आप हमारे हौसले को आजमा लें। हमने लडऩा सीखा है, झुकना नहीं। यह बात अंग्रेजी सेना के कमांडर को बुरी लगी और भारी सेना के साथ भरतपुर पर आक्रमण कर दिया।

संधि को भी ठुकराया: युद्ध से विस्मत होकर लार्ड लेक ने भरतपुर संधि का प्रस्ताव भेजा। लेकिन राजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों की यह संधि को ठुकराते हुए युद्ध के लिए ललकारा। अंग्रेजों के सामने जाट सेनाएं निर्भिकता से डटी रहीं। अंग्रेजी सेना तोप से गोले उगलती जा रही थी और वह गोले भरतपुर की मिट्टी के उस किले के पेट में समाते जा रहे थे। तोप के गोलों के घमासान हमले के बाद भी जब भरतपुर का किला ज्यों का त्यों खड़ा रहा तो अंग्रेजी सेना में आश्चर्य और सनसनी फैल गयी।

तोप के गोले धंस जाते थे दीवार में: यह किला यद्यपि इतना विशाल नहीं है, जितना चित्तौड़ का किला। लेकिन फिर भी इस किले को अजेय माना जाता है। इस किले की एक और खास बात यह है कि किले के चारों ओर मिट्टी के गारे की मोटी दीवार है। इसके बाहर पानी से भरी हुई खाई है। यही वजह है कि इस किले पर आक्रमण करना सहज नहीं था। क्योंकि तोप से निकले हुए गोले गारे की दीवार में धंस जाते और उनकी आग शांत हो जाती। ऐसी असंख्य गोले दागने के बावजूद इस किले की पत्थर की दीवार ज्यों की त्यों सुरक्षित बनी रही है। इसलिए दुश्मन इस किले के अंदर कभी प्रवेश नहीं कर सके।


लॉर्ड लेक स्वयं विस्मित होकर इस किले की अद्भुत क्षमता को देखते और आंकते रहे। संधि का संदेश फि र दोहराया गया और राजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजी सेना को एक बार फि र ललकार दिया। अंग्रेजों की फौज को लगातार रसद और गोला बारूद आते जा रहे थे और वह अपना आक्रमण निरंतर जारी रखती रही। परन्तु भरतपुर के किले, और जाट सेनाएँ, जो अडिग होकर अंग्रेजों के हमलों को झेलती रही और मुस्कुराती रही। इतिहासकारों का कहना है कि लार्ड लेक के नेतृत्व में अंग्रेजी सेनाओं ने 13 बार इस किले में हमला किया और हमेशा उसे मुँह की खानी पड़ी और अंग्रेजी सेनाओं को वापस लौटना पड़ा।

महाराजा रणजीत सिंह ने होल्कर नरेश को बिदाई दी। होल्कर नरेश ने रुँधे गले से कहा कि होल्कर भरतपुर का सदा कृतज्ञ रहेगा, हमारी यह मित्रता अमर रहेगी और इस मित्रता का चश्मदीद गवाह रहेगा, भरतपुर का ऐतिहासिक किला, जिसमें रक्षा करने वाले 8 भाग हैं और अनेक बुर्ज भी। इस किले के दोनों दरवाजों को जाट महाराज जवाहर सिंह दिल्ली से लाए थे।

भरतपुर के इस दुर्ग का महत्व यहाँ स्थित राजकीय संग्रहालय के कारण बढ़ जाता है। लोहागढ़ के केन्द्र में स्थित इस संग्रहालय में समीपस्थ जगहों और भरतपुर राज्य से संग्रह किये गए पुरातत्व महत्व की वस्तुओं का बहुमूल्य संकलन है। कचहरी कलाँ नाम के विशाल शाही भवन को, जो किसी समय में भरतपुर राज्य का प्रशासनिक कार्यालय था 1944 में संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था। बाद में दूसरी मंजिल पर स्थित कमरा खास को भी इस संग्रहालय में शामिल कर लिया गया। यहां पर प्राचीन गाँवों नोह, मल्लाह, बरेह, बयाना आदि के कुषाण काल (पहली शताब्दी) से लेकर 19वीं शती तक की मूर्तियाँ तथा मध्यकाल में जाट राजाओं द्वारा प्रयोग किये गए अस्त्रशस्त्र, कलाकृतियाँ, अभिलेख, जीवाश्म स्थानीय शिल्प व कला को प्रदर्शित किया गया है।

इस नगरी में कई प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमें गंगा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर तथा बिहारीजी का मंदिर अत्यंत लोकप्रिय और ख्यातिप्राप्त है। शहर के बीच में एक बड़ी जामा मस्जिद भी है। ये मंदिर और मस्जिद पूर्ण रूप से लाल पत्थर के बने हैं। इन मंदिरों और मस्जिद के बारे में एक अजीब कहानी प्रचलित है। बड़े-बूढ़े लोगों का कहना है कि भरतपुर रियासत में जब महाराजा किसी व्यक्ति को नौकरी पर रखते थे तो उस व्यक्ति के साथ यह शर्त रखी जाती थी कि हर महीने उसकी तनख्वाह में से 1 पैसा धर्म के खाते काट लिया जाएगा। हर नौकर को यह शर्त मंजूर थी।

रियासत के हर कर्मचारी के वेतन से 1 पैसा हर महीने धर्म के खाते में जमा होता था। इस धर्म के भी दो खाते थे, हिन्दू कर्मचारियों का पैसा हिन्दू धर्म के खाते में जमा होता था और मुस्लिम कर्मचारियों का पैसा इस्लाम धर्म के खाते में इकट्ठा किया जाता था। कर्मचारियों के मासिक कटौती से इन खातों में जो भारी रकम जमा हो गई, उसका उपयोग धार्मिक प्रतिष्ठानों के उपयोग में किया गया। हिन्दुओं के धर्म खाते से लक्ष्मण मंदिर और गंगा मंदिर बनाए गए, जबकि मुसलमानों के धर्म खाते से शहर की बीचों बीच बहुत बड़ी मस्जिद का निर्माण किया गया। भरतपुर के शासकों ने हिन्दू और मुसलमानों की सहयोग और सामंजस्य की भावना को प्रश्रय दिया। धर्म निरपेक्षता के ऐसे उदाहरण बिरले ही होंगे। कभी भरतपुर जाना हो तो मंदिर और मस्जिद को देखना न भूलें, जो पत्थर की वस्तुकला और पच्चीकारी में अद्भुत नमूने हैं।

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