सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

आखिर क्या हो गया था ऐसा कि इस राजा को युद्ध छोड़कर आना पड़ा राजमहल में

राजस्थान यानी राजाओं की भूमि। यहां एक से बढ़कर एक यशस्वी राजा हुए, जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए खून बहा दिया। यहां पर ऐसी कई दास्तानें हैं, जिनके बारे में राजस्थान के इतिहासकारों ने लिखते समय भी गौरवान्वित महसूस किया होगा। ऐसी ही एक साहस और दर्द से भरी दास्तान है जोधपुर के राजा जसवंत सिंह की।
इस योद्धा ने अपने सैनिकों को बचाने के लिए युद्धभूमि छोड़ दी, लेकिन यहां रानी ने अपने पति की कुशलक्षेम पूछने के बजाए ऐसी फटकार लगाई कि राजा रानी की ओर देखता ही रह गया। रानी के आन-बान और व्यंग्य भरे शब्द सुनकर राजा को अपनी रानी की बहादुरी और सोच पर बड़ा गर्व हुआ।

हिन्दू धर्म का विरोध नहीं कर पाए थे औरंगजेब: जोधपुर के राजा जसवंत सिंह ने अपने शासन काल के दौरान कई युद्धों में दिल्ली के बादशाह शाहजहां और औरंगजेब का साथ दिया। इसमें उन्होंने सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया। हालांकि, जब तक जसवंत सिंह जीवित थे, तब तक औरंगजेब मंदिर तोडऩा तो दूर जजिया कर (एक तरह का धार्मिक कर) भी नहीं ले पाए थे। लेकिन जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद औरंगजेब ने राजस्थान पर आक्रमण करना और अपना प्रभुत्व जमाना शुरू कर दिया। शायद यही वजह थी कि जसवंत सिंह के जीवित रहते औरंगजेब कभी सफल नहीं हो सका। 28 नवम्बर, 1678 को काबुल में जसवंत सिंह के निधन का समाचार जब औरंगजेब ने सुना,  तब उसने कहा, "आज धर्म विरोध का द्वार टूट गया है"।

जिस बालक ने सेना के ऊंटों के काटे थे सिर, उसे को बनाया अंगरक्षक: ये वही जसवंत सिंह थे, जिन्होंने एक वीर व निडर बालक द्वारा जोधपुर सेना के ऊंटों की व उन्हें चराने वालों की गर्दन काटने पर सजा के बदले उस वीर बालक की स्पष्टवादिता, वीरता और निडरता देख उसे सम्मान के साथ अपना अंगरक्षक बनाया और बाद में अपना सेनापति भी। यह बालक कोई और नहीं, इतिहास में वीर के साथ स्वामिभक्त के रूप में प्रसिद्ध वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ था।

महाराजा की तरह आन-बान की पक्की थी रानी: जसवंत सिंह वीर पुरुष थे। ठीक उसी तरह हाड़ी रानी भी आन-बान की पक्की थी। हाड़ी रानी बूंदी के शासक शत्रुशाला हाड़ा की पुत्री थी। 1657 में शाहजहां के बीमार पड़ने पर उसके पुत्रों ने दिल्ली की बादशाहत के लिए विद्रोह कर दिया। उनमें एक पुत्र औरंगजेब का विद्रोह दबाने हेतु शाहजहां ने जसवंत सिंह को मुगल सेनापति कासिम खां सहित भेजा। उज्जैन से 15 मील दूर धनपत के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन धूर्त और कूटनीति में माहिर औरंगजेब की कूटनीति के चलते मुगल सेनापति कासिम खां सहित 15 अन्य मुगल अमीर भी औरंगजेब से मिल गए। राजपूत सरदारों ने शाही सेना के मुस्लिम अफसरों के औरंगजेब से मिलने व मराठा सैनिकों के भी भाग जाने के चलते यह तय किया कि कई सेनाओं को वापिस भेजा जाएगा। युद्ध की भयंकरता व परिस्थितियों को देखकर घायल हो चुके महाराज जसवंत सिंह जी को जबरदस्ती घोड़े पर बिठा 600 राजपूत सैनिकों के साथ जोधपुर रवाना कर दिया और उनके स्थान पर रतलाम नरेश रतन सिंह को अपना नायक नियुक्त कर औरंगजेब के साथ युद्ध करने लगे। इस युद्ध में इन सभी को वीरगति प्राप्त हुई। इस युद्ध में औरंगजेब की विजय हुई।

 रानी ने लगाई महाराजा को फटकार, कहा, क्यूं आए आप महल में : महाराजा जसवंत सिंह के जोधपुर पहुंचने की खबर जब किलेदारों ने महारानी को दी, तो महारानी हैरान रह गईं। किलेदारों ने महाराज के स्वागत की तैयारियों का अनुरोध किया, लेकिन महारानी ने सेवकों को किले के दरवाजे बंद करने के आदेश दे दिए। साथ ही, अपने पति महाराज जसवंत सिंह को कहला भेजा कि युद्ध से हारकर जीवित आए राजा के लिए किले में कोई जगह नहीं  होती। अपनी सास राजमाता से कहा कि आपके पुत्र ने यदि युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया होता तो मुझे गर्व होता और मैं अपने आप को धन्य समझती। लेकिन आपके पुत्र ने तो पूरे राठौड़ वंश के साथ-साथ मेरे हाड़ा वंश को भी कलंकित कर दिया। आखिर महाराजा द्वारा रानी को विश्वास दिलाने के बाद कि मैं युद्ध से कायर की तरह भाग कर नहीं  आया, बल्कि मैं तो सैन्य-संसाधन जुटाने आया हूं। रानी ने किले के दरवाजे खुलवाए।

लकड़ी के बर्तनों में परोसा खानाः  रानी ने महाराजा को चांदी के बर्तनों की बजाय लकड़ी के बर्तनों में खाना परोसा और महाराजा द्वारा कारण पूछने पर बताया कि कही बर्तनों के टकराने की आवाज को आप तलवारों की खनखनाहट समझकर डर न जाए, इसलिए आपको लकड़ी के बर्तनों में खाना परोसा गया है। रानी के व्यंग्य बाण रूपी शब्दों को सुनकर महाराज को अपनी रानी पर बड़ा गर्व हुआ और वह फिर से अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने लगे।

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