
पहली ही नजर में हो गया था प्यार: पृथ्वीराज किसी कारणवश कन्नौज गए थे। वहां संयोगिता से उनकी मुलाकात हुई। पहली नजर में ही पृथ्वीराज को संयोगिता से प्रेम हो गया। इस प्यार की आग एक तरफ ही नहीं लगी थी बल्कि संयोगिता को भी प्रेम हो गया था। लेकिन दोनों का मिलना सहज नहीं था। महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान के बीच अच्छे रिश्ते नहीं थे। दोनों एक दूसरे को देखना नहीं चाहते थे। कहा जा सकता है कि दोनों एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन थे। यह बात जब जयचंद को पता चली तो वह आनन-फानन में संयोगिता का स्वयंवर आयोजित कर दिया। जिसमें पृथ्वीराज को खासतौर से नहीं बुलाया गया। वह दरबार में न आ सके इसके लिए भी सुरक्षा के पुख्ता का इंतजाम किए गए थे। पृथ्वीराज का अपमान करने और उसे नीचा दिखाने के लिए दरबान के स्थान पर उनकी प्रतिमा लगाई गई। ताकि दरबार आने वाले हर शासक और मेहमान की नजर इस पर पड़े और वे पृथ्वीराज का उपहास कर सके।
राजा बन गए बुत : दरबार में आने से पहले पृथ्वीराज ने अपना पूरा स्वरूप बदल दिया। वे दरबार में रखे अपने बुत जैसे बन कर आए और उस प्रतिमा की जगह खड़े हो गए। दरबार में रखी प्रतिमा थी। जैसे ही स्वयंवर शुरू हुआ पृथ्वीराज संयोगिता को भरे दरबार से उठा कर ले गए। सभी एक दूसरे का मुंह देखते ही रह गए। पृथ्वीराज ने इस कार्य को अंजाम देने के लिए पहले से ही योजना बना रखी थी। इसके लिए उन्होंने एक घोड़े और अपने कुछ खास लोगों को दरबार के बाहर खड़ा रखा था। जैसे ही पृथ्वीराज संयोगिता को लेकर बाहर आए , योजना के अनुसार वे संयोगिता के साथ घोड़े पर बैठे और निकल पड़े अपनी राजधानी की ओर।
मीलों का सफर घोड़े पर तय किया। हालांकि जयचंद के सिपाहियों ने उन्हें रोकने और पकडऩे की काफी कोशिश की। लेकिन वे नाकाम रहे। राजधानी पहुंचते ही पृथ्वीराज ने संयोगिता से पूरे रस्मो-रिवाज के साथ विवाह किया।
बचपन में दे दिया था अपनी वीरता का परिचय: इनकी प्रेम कहानी राजस्थान के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। पृथ्वीराज चौहान को उनके नाना ने गोद लिया था। उस समय दिल्ली सल्तनत को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक ऐसे शासक की जरूरत थी। जिसकी रगों में चौहान वंश का खून हो। आखिरकार एक लंबे समय के बाद अजमेर के महाराज सोमेश्वर के यहां पृथ्वीराज चौहान जन्म हुआ। इनकी मां कर्पूरी देवी थी। जो दिल्ली के राजा अनंगपाल की इकलौती पुत्री थी। कम उम्र में दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला पृथ्वीराज पहला शासक थे। उम्र इतनी कम और वीरता के कारनामे इतने अधिक कि जो दूसरे शासकों की आंखों का काटा बन गए।
बदला लेने के लिए मोहम्मद गौरी को दिया न्योता: जयचंद ने इस अपमान का बदला लेने के लिए मोहम्मद गौरी से हाथ मिला लिया। जयचंद ने मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए न्योता दिया। जयचंद का नाम सबसे बड़े धोखेबाजों में लिया जाता है, जिसने अपने ही दामाद को मरवाने के लिए घऱ की भेदी की भूमिका निभाई। पृथ्वीराज को हराने के लिए मोहम्मद गौरी ने 17 बार आक्रमण किया। लेकिन वह हर बार परास्त हुआ। हर बार पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को छोड़ दिया। न उसे बंधक बनाया और न उसे किसी तरह की यातना दी। कहते है न की सांप अधमरा काफी घातक होता है। ठीक वैसा ही मोहम्मद साबित हुआ। एक बार फिर से आक्रमण में मोहम्मद गौरी जुट गया। इस बार पूरी सैन्य शक्ति और योजना के साथ आक्रमण किया। इतिहासकारों का कहना है कि एक हद तक पृथ्वीराज मोहम्मद गौरी को परास्त कर चुका था। लेकिन छल से मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज को बंधक बना लिया और उसे अपने साथ अपने मुल्क ले गया। वहां उसने पृथ्वीराज से अत्यन्त बुरा सलूक किया। उसने गरम सलाखों से उसकी आंखें जला दी। लेकिन पृथ्वीराज फिर भी हार नहीं माने। उन्होंने राजकवि चंदबरदाई के साथ मिलकर एक योजना बनाई। पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण चलाने के लिए प्रशिक्षण लिया।
वैसे तो पृथ्वीराज बाण छोडऩे में माहिर थे। लेकिन इस कला के प्रदर्शन के लिए चंदबरदाई ने गौरी तक यह बात पहुंचाई। गौरी ने इस प्रदर्शन के लिए यह सोच मंजूरी दे दी कि एक अंधा क्या बाण चला सकता है। भरी महफिल में पृथ्वीराज ने गौरी को शब्दभेदी बाण से मार गिराया। इसके बाद दुश्मन के हाथों मरने से बेहतर उन्होंने और उनके राजकवि चंदरबरदाई ने एक दूसरे को मार वीरगित प्राप्त कर ली।
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