जयपुर। 200 साल। अत्याचार। ब्रिटिश साम्राज्य। पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन। अंग्रेजी हुकूमत यह मान चुकी थी अब यहां शासन करना आग से खेलने के बराबर है। लेकिन भारत छोडऩे से पहले अंग्रेजों ने कूटनीति अपनाई। भारत को दो हिस्सों में बांट डाला। वर्ष 1949। आजादी का जश्न। चारों ओर खुशी का माहौल। इन बीच एक अजीब सा सन्नाटा फैला था। आजाद होने के बावजूद अपनों के बीच में भी अजनबी जैसी स्थिति थी। अब रियासतों का एकीकरण कर एक राज्य बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। ताकि एक संपूर्ण भारत की स्थापना की जा सके।
ऐसे में राजस्थान राज्य की नींव रखी गई। जयपुर और जोधपुर को छोड़कर बाकी रियासतें राजस्थान में शामिल हो चुकी थी। या फिर हामी भर चुकी थी। बीकानेर और जैसलमेर रियासतें जोधपुर नरेश की हां पर टिकी हुई थी। जबकि जोधपुर नरेश महाराजा हनुवंत सिंह जिन्ना के संपर्क में थे। जिन्ना ने उन्हें प्रलोभन दिया अगर आप पाकिस्तान में शामिल होते हैं तो पंजाब-मारवाड़ के सूबे का प्रमुख बना दिए जाएंगे। उस समय जोधपुर से थार के रास्ते लाहौर तक एक रेल लाइन हुआ करती थी। जिसे सिंध और राजस्थान की रियासतों के बीच प्रमुख व्यापार हुआ करता था। जिन्ना ने रेल लाइन को जोधपुर के कब्जे का प्रलोभन भी दिया। हनुवंत सिंह जिन्ना की इस प्रलोभन में पूरी तरह से फंस गए थे। उन्होंने हामी भी भर दी।
इस बात की जानकारी सरदार बल्लभ भाई पटेल को लगी। उस समय पटेल जूनागढ़ (तत्कालीन बम्बई और वर्तमान में गुजरात) के मुस्लिम राजा को समझा रहे थे। वे हेलिकॉप्टर से जोधपुर के लिए रवाना हो गए। लेकिन सिरोही-आबू के पास उनका हेलिकॉप्टर खराब हो गया। ऐसे में उसी दिन जोधपुर पहुंचना मुश्किल था। क्योंकि सन साधनों की काफी कमी थी। स्थानीय साधनों से सफर कर रात में जोधपुर के उम्मेद भवन पहुंचे। यहां सरदार बल्लभ भाई पटेल को देखकर हनुवंत सिंह घबरा से गए। उन्होंने आसपास के सामंतों को बुला लिया। बातचीत के दौरान हनुवंत सिंह ने सरदार को धमकाने के लिए मेज पर ब्रिटिश पिस्टल रख दी। सरदार ने जोधपुर नरेश को मुस्लिम राष्ट्र में शामिल होने पर होने वाली सारी तकलीफों के बारे में बताया लेकिन हनुवंत सिंह नहीं माने। उलटे सरदार पर राठौड़ों को डराने का आरोप लगाकर आसपास बैठे सामंतों को उकसाने लगे।
एक बार स्थिति ऐसी आ गई कि आखिरकार सरदार ने पिस्टल उठा ली और हनुवंत की तरफ तानकर कहा कि राजस्थान में विलय पर हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो आज हम दो सरदारों में से एक सरदार नहीं बचेगा। सचिव मेनन सहित उपस्थित सभी सामंत डर गए। ऐसे में हनुवंत सिंह को हस्ताक्षर करने पड़े। इस तरह जोधपुर सहित बीकानेर और जैसलमेर भी राजस्थान में शामिल हो गए। इस घटना के कारण सरदार पटेल ने वृहद राजस्थान के प्रथम महाराज प्रमुख का पद हनुवंत सिंह को न देकर उदयपुर के महाराणा भूपालसिंह को दिया।
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