बुधवार, 26 अप्रैल 2017

क्या आप जानते हैं कि एक लाख वर्ष पुरानी है राजस्थान की सभ्यता

पुरातत्वों और इतिहासकारों के अनुसार राजस्थान का इतिहास पूर्व पाषणकाल में ही शुरू हुआ, बनास नदी के किनारे और अरावली पहाड़ के गर्भ में बसा था यह क्षेत्र

जयपुर। राजस्थान। यहां की सभ्यता और संस्कृति काफी पुरानी ही नहीं बल्कि एक लाख वर्ष पहले इसका आगाज भी हो गया था। पुरातत्ववेताओं के अनुसार राजस्थान सभ्यता की शुरुआत पूर्व पाषणकाल में ही हो गई थी। आज से करीब एक लाख पहले मानव नदी किनारे या फिर पहाड़ की कदराहों में निवास करता था। इतिहासकारों के अनुसार ये मुख्य तय बनास नदी के किनारे या फिर अरावली के उस पार की नदियों के किनारे निवास करते थे। हालांकि भोजन उनके लिए बड़ी समस्या थी। ऐसे में वे एक जगह स्थिर नहीं रह पाते थे। वे पत्थर के औजारों की मदद से शिकार करते थे। इसका प्रमाण इन औजारों के कुछ नमूने बैराठ, रैध और भानगढ़ के आसपास पाए गए हैं।

क्या आदिकाल से ऐसा ही था राजस्थान: राजस्थान का इतिहास किसी रहस्य से कम नहीं है। पुरातत्ववेताओं और इतिहासकारों के अनुसार राजस्थान का उत्तर-पश्चिमी में मरुस्थल नहीं था जैसा आज है। इनका मनना है कि यहां अतिप्राचीनकाल में सरस्वती और दृशद्वती जैसी विशाल नदियां बहा करती थीं। ऐसे भी साक्ष्य मिले है। जो इतिहास के पन्नों पर एक पहचान रखती है। या फिर जिसकी सभ्यता आज भी किसी विकसित शहर से तुल्ला की जाती है। हड़प्पा और रंगमहल जैसी संस्कृतियां इन नदी घाटियों में फली-फूलीं हैं। यहां की गई खुदाइयों से खासकर कालीबंग के पास, पांच हजार साल पुरानी एक विकसित नगर सभ्यता का पता चला है। हड़प्पा और रंगमहल संस्कृतियां सैकडों किलोमीटर दक्षिण तक राजस्थान के एक बहुत बड़े इलाके में फैली हुई थीं।

गणराज्यों में बंटा हुआ था ईसा पूर्व चौथी सदी में: इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि ईसा पूर्व चौथी सदी और उसके पहले यह क्षेत्र कई छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था। इनमें से दो गणराज्य मालवा और सिवि इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने सिकंदर जैसे महान शासक को पंजाब से सिंध की ओर लौटने के लिए बाध्य कर दिया था। उस समय उतरी बीकानेर पर एक गणराज्यीय योद्धा कबीले यौधेयत का अधिकार था। यह वही ब्रह्मावर्त है जिसकी महती चर्चा मनु ने की है। इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। महाभारत में उल्लेखित है मत्स्य पूर्वी राजस्थान और जयपुर के एक बड़े हिस्से पर शासन करते थे। जयपुर से 80 किमी उत्तर में बैराठ, जो तब विराटनगर कहलाता था, उनकी राजधानी थी। इस क्षेत्र की प्राचीनता का पता अशोक के दो शिलालेखों और चौथी पांचवी सदी के बौद्ध मठ के भनावशेषों से भी चलता है।

काफी समृद्ध इलका था राजस्थान
: भरतपुर, धौलपुर और करौली उस समय सूरसेन जनपद के अंश थे जिसकी राजधानी मथुरा थी। भरतपुर के नोह नामक स्थान में अनेक उतर-मौर्यकालीन मूर्तियां और बर्तन खुदाई में मिले हैं। शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कुषाणकाल तथा कुषाणोतर तृतीय सदी में उतरी एवं मध्यवर्ती राजस्थान काफी समृद्ध इलाका था। राजस्थान के प्राचीन गणराज्यों ने अपने को पुनस्र्थापित किया और वे मालवा गणराज्य के हिस्से बन गए। मालवा गणराज्य हूणों के आक्रमण के पहले काफी स्वायत् और समृद्ध था। अंततघ् छठी सदी में तोरामण के नेतृतव में हूणों ने इस क्षेत्र में काफी लूट-पाट मचाई और मालवा पर अधिकार जमा लिया। लेकिन फिर यशोधर्मन ने हूणों को परास्त कर दिया और दक्षिण पूर्वी राजस्थान में गुप्तवंश का प्रभाव फिर कायम हो गया। सातवीं सदी में पुराने गणराज्य धीरे-धीरे अपने को स्वतंत्र राज्यों के रूप में स्थापित करने लगे। इनमें से मौर्यों के समय में चितौड़ गुबिलाओं के द्वारा मेवाड़ और गुर्जरों के अधीन पश्चिमी राजस्थान का गुर्जरात्र प्रमुख राज्य थे।