प्यार एक ऐसा शब्द है जिसका बयां करना सहज नहीं है। वैसे तो प्यार में साथ जीने और मरने की कसमें खाने वाले बहुत लोगों के बारे में सुना होगा। लेकिन हमारे देश में ऐसे शासकों की भी कभी नहीं है जिन्होंने प्यार में मिसाल कायम की। अपनी मुमताज की याद में एक ऐसा महल बनवाया जो पूरे दुनिया में सातवां अजूबा है। हम बात कर रहे हैं शाहजहां की। जिसने अपनी बेगम के लिए न सिर्फ ताजमहल बनवाया बल्कि उसके मरने के बाद भी उसे सीने लगाकर सोता रहा। आज हम आपके लिए आए हैं एक ऐसी प्यार की दास्तां। रोमांचित करने वाली यह एक ऐसी हकीकत है। जिसे पढ़कर आप हैरान हो जाएंगे। प्यार का दूसरा जुदाई है। जंग और फिर मौत प्रेम की ऐसी सच्चाई जिसे चाहकर भी नकारा नहीं जा सकता है।
प्यार की निशानी ताजमहल, एक ऐसी ही दास्तां को बयां करता है जिसमें प्यार भी है, जुदाई भी है, जंग भी है और फिर मौत भी है। संगमरमर से बने आगरा के खूबसूरत ताजमहल के बारे में सभी अच्छी तरह परिचित हैं। यह क्यों बना, किसने बनाया और बनाने के बाद इसका निर्माण करवाने वाले का क्या हश्र हुआ, यह बात किसी से भी छिपी नहीं है। लेकिन आज हम आपको आगरा के इसी ताजमहल के बारे में जो सच्चाई बताने जा रहे हैं, उसे शायद बहुत कम ही लोग जानते होंगे। ताजमहल से जुड़ी यह हकीकत हैरान करने वाली भी है और थोड़ी परेशान भी करती है।
आगरा के जिस स्थान पर आज ताजमहल खड़ा है वह कभी जयपुर के महाराज जयसिंह की धरोहर हुआ करता था। महाराज जयसिंह को इस स्थान के बदले शाहजहां ने आगरा के बीचो बीच एक महल दे दिया था। ताजमहल का निर्माण करवाने से पहले इस स्थान के आसपास की तीन एकड़ जमीन को खोदा गया और इस नींव को कंकड़-पत्थरों से इस कद भर कर ऊंचा कर दिया गया ताकि यमुना नदी की नमी से इस इस इमारत का बचाव किया जा सके।
शाहजहां काला ताजमहल भी बनवाना चाहता था, लेकिन इससे पहले ही उसे उसके पुत्र औरंगजेब ने कैद कर लिया", यह कहना था उस पहले शख्स का जो ताजमहल घूमने आया था। यूरोपीय पर्यटक जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर पहला इंसान था जो ताजमहल घूमने आया था और उसी ने इस बात को पुख्ता किया था कि शाहजहां ताजमहल के पास एक काले रंग का ताजमहल भी बनवाना चाहता था।
अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देते समय शाहजहां की सबसे चहेती बेगम मुमताज की मौत हो गई थी। शाहजहां अपनी बेगम से बेइंतहा मोहब्बत करता था और चाहता था कि मुमताज अपनी आंखों से ताजमहल को बनता देखे। लेकिन ऐसा ना हो सका इसीलिए जब तक ताजमहल का निर्माण पूरा नहीं हो गया तब तक एक यूनानी हकीम की मदद से शाहजहां ने मुमताज महल के शव को एक ममी की भांति संरक्षित रखा था। लेकिन इतिहासकार इस बात से इंकार करते हैं कि मुमताज महल के शव को ममी के रूप में ही दफनाया भी गया था।
ताजमहल के निर्माण में एशिया के अलग-अलग स्थानों से पत्थर लाकर प्रयोग किए गए। मुख्य पत्थर संगमरमर को राजस्थान से मंगवाया गया था, पंजाब से जैस्पर, तिब्बत से फिरोजा, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, चीन से हरिताश्म और क्रिस्टल, श्रीलंका से नीलम और अरब से इंद्रगोप पत्थर लाए गए थे। पत्थरों की आवाजाही को 1,000 हाथियों ने अंजाम दिया था।
ताजमहल में जो कब्र पर्यटकों के लिए खोली गई है वह मुमताज और शाहजहां की असली कब्र नहीं है।तहखाने में इन दोनों प्रेमियों की असली कब्रें मौजूद हैं, जिनकी नक्काशी अविस्मरणीय और अतुलनीय है। तहखाने में मुमताज महल की कब्र पर अल्लाह के 99 नाम खुदे हुए हैं। जबकि शाहजहां की कब्र पर "उसने हिजरी के 1076 साल में रज्जब के महीने की छब्बीसवीं तिथि को इस संसार से नित्यता के प्रांगण की यात्रा की" लिखा हुआ है।