रविवार, 30 जून 2013

आइए जानते हैं ताजमहल के बारे में कुछ रोचक किस्से !


प्यार एक ऐसा शब्द है जिसका बयां करना सहज नहीं है। वैसे तो प्यार में साथ जीने और मरने की कसमें खाने वाले बहुत लोगों के बारे में सुना होगा। लेकिन हमारे देश में ऐसे शासकों की भी कभी नहीं है जिन्होंने प्यार में मिसाल कायम की। अपनी मुमताज की याद में एक ऐसा महल बनवाया जो पूरे दुनिया में सातवां अजूबा है। हम बात कर रहे हैं शाहजहां की। जिसने अपनी बेगम के लिए न सिर्फ ताजमहल बनवाया बल्कि उसके मरने के बाद भी उसे सीने लगाकर सोता रहा। आज हम आपके लिए आए हैं एक ऐसी प्यार की दास्तां। रोमांचित करने वाली यह एक ऐसी हकीकत है। जिसे पढ़कर आप हैरान हो जाएंगे। प्यार का दूसरा जुदाई है। जंग और फिर मौत प्रेम की ऐसी सच्चाई जिसे चाहकर भी नकारा नहीं जा सकता है।

प्यार की निशानी ताजमहल, एक ऐसी ही दास्तां को बयां करता है जिसमें प्यार भी है, जुदाई भी है, जंग भी है और फिर मौत भी है। संगमरमर से बने आगरा के खूबसूरत ताजमहल के बारे में सभी अच्छी तरह परिचित हैं। यह क्यों बना, किसने बनाया और बनाने के बाद इसका निर्माण करवाने वाले का क्या हश्र हुआ, यह बात किसी से भी छिपी नहीं है। लेकिन आज हम आपको आगरा के इसी ताजमहल के बारे में जो सच्चाई बताने जा रहे हैं, उसे शायद बहुत कम ही लोग जानते होंगे। ताजमहल से जुड़ी यह हकीकत हैरान करने वाली भी है और थोड़ी परेशान भी करती है।

आगरा के जिस स्थान पर आज ताजमहल खड़ा है वह कभी जयपुर के महाराज जयसिंह की धरोहर हुआ करता था। महाराज जयसिंह को इस स्थान के बदले शाहजहां ने आगरा के बीचो बीच एक महल दे दिया था। ताजमहल का निर्माण करवाने से पहले इस स्थान के आसपास की तीन एकड़ जमीन को खोदा गया और इस नींव को कंकड़-पत्थरों से इस कद भर कर ऊंचा कर दिया गया ताकि यमुना नदी की नमी से इस इस इमारत का बचाव किया जा सके।

शाहजहां काला ताजमहल भी बनवाना चाहता था, लेकिन इससे पहले ही उसे उसके पुत्र औरंगजेब ने कैद कर लिया", यह कहना था उस पहले शख्स का जो ताजमहल घूमने आया था। यूरोपीय पर्यटक जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर पहला इंसान था जो ताजमहल घूमने आया था और उसी ने इस बात को पुख्ता किया था कि शाहजहां ताजमहल के पास एक काले रंग का ताजमहल भी बनवाना चाहता था।

अपनी चौदहवीं संतान को जन्म देते समय शाहजहां की सबसे चहेती बेगम मुमताज की मौत हो गई थी। शाहजहां अपनी बेगम से बेइंतहा मोहब्बत करता था और चाहता था कि मुमताज अपनी आंखों से ताजमहल को बनता देखे। लेकिन ऐसा ना हो सका इसीलिए जब तक ताजमहल का निर्माण पूरा नहीं हो गया तब तक एक यूनानी हकीम की मदद से शाहजहां ने मुमताज महल के शव को एक ममी की भांति संरक्षित रखा था। लेकिन इतिहासकार इस बात से इंकार करते हैं कि मुमताज महल के शव को ममी के रूप में ही दफनाया भी गया था।

ताजमहल के निर्माण में एशिया के अलग-अलग स्थानों से पत्थर लाकर प्रयोग किए गए। मुख्य पत्थर संगमरमर को राजस्थान से मंगवाया गया था, पंजाब से जैस्पर, तिब्बत से फिरोजा, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, चीन से हरिताश्म और क्रिस्टल, श्रीलंका से नीलम और अरब से इंद्रगोप पत्थर लाए गए थे। पत्थरों की आवाजाही को 1,000 हाथियों ने अंजाम दिया था।

ताजमहल में जो कब्र पर्यटकों के लिए खोली गई है वह मुमताज और शाहजहां की असली कब्र नहीं है।तहखाने में इन दोनों प्रेमियों की असली कब्रें मौजूद हैं, जिनकी नक्काशी अविस्मरणीय और अतुलनीय है। तहखाने में मुमताज महल की कब्र पर अल्लाह के 99 नाम खुदे हुए हैं। जबकि शाहजहां की कब्र पर "उसने हिजरी के 1076 साल में रज्जब के महीने की छब्बीसवीं तिथि को इस संसार से नित्यता के प्रांगण की यात्रा की" लिखा हुआ है।

मंगलवार, 25 जून 2013

लैला की दर्द भरी दास्तां, राजस्थान की सीमा पर मजनूं ने ली थीं आखिरी सांसें

प्यार, इश्क, प्रेम और मोहब्बत ये ऐसे शब्द हैं जो जुबान पर आते ही मन रोमांचित हो जाता है। लेकिन इनके रास्ते सहज नहीं हैं। हर पग पर कांटे और आग के शोले हैं। या यूं कहें कि ये आग का दरिया और जिसे डूब कर पार करना है। दुनिया में ऐसी कई प्रेम कहानियां हैं, जिन्हें आपने भले ही न देखा हो, लेकिन उनकी दर्द भरी दास्तां जरूर सुनी होगी। ये ऐसे प्रेमी युगल थे, जिन्होंने अपनी मोहब्बत के लिए सब कुछ न्यौछावर कर दिया। आज हम आपको एक ऐसी प्रेमी युगल के बारे बताने जा रहा है। जिसकी दास्तान आज भी सुनी सुनाई जाती है। यह प्रेम कहानी आज भी अमर है। इस प्रेमी युगल को भारत का रोमियो जूलियट कहा जाता है। जी हां ये जोड़ा लैला-मजनूं है।

राजस्थान की सीमा पर मजनूं ने ली आखिरी सांस: राजस्थान के गंगानगर जिले में अनूपगढ़ से 11 किमी की दूरी पर लैला और मजनूं का मजार है। कहा जाता है कि एक दूसरे के प्यार में डूबे लैला मजनूं ने प्रेम में विफल होने के बाद अपनी जा दे दी थी। जमाने के विरोध के बावजूद दोनों की मजारें बिल्कुल पास हैं। भारत-पाक सीमा के नजदीक स्थित यह मजार मजहब से परे है। भारत पाक में मतभेद होने पर भी हिन्दू और मुस्लिम दोनों यहां आकर सिर नवाजते हैं। कहने का अभिप्राय है कि प्रेम सरहदें नहीं मानता। वह सीमाओं से सदा सर्वदा मुक्त है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि अपने प्रेम को बचाने समाज से भागे इस प्रेमी जोड़े ने राजस्थान के इसी बिजनौर गांव में शरण ली और यहीं अंतिम सांस भी ली। इस स्थल को मुस्लिम लैला मजनूं की मजार कहते हैं तो हिंदू लैला मजनूं की समाधि।

प्यार दर-दर भटकता रहा मजनूं: किसी कल्पना से कम नहीं है लैला मजनूं की प्रेम कहानी। लेकिन यह सच है। सदियों से लैला मजनूं की दास्तान सुनाई जा रही है। यह कहानी उस दौर की है जब प्यार को गुनाह माना जाता था। प्रेम करना किसी सामाजिक बुराई से कम नहीं था। लैला मजनूं का प्रेम लंबे समय तक चला और आखिर इसका अंत काफी दुखदायी हुआ। दोनों जानते थे कि वे कभी एक साथ नहीं रह पाएंगे। एक दूसरे के लिए प्रेम की इस असीम भावना के साथ दोनों सदा के लिए इस दुनिया से दूर चले गए। उनके प्रेम की पराकाष्ठा यह थी कि लोगों के उन दोनों के नाम के बीच में "और" लगाना भी मुनासिब नहीं समझा और दोनों हमेशा "लैला-मजनूं" के रूप में ही पुकारे गए। बाद में प्यार करने वालों के लिए यह बदनसीब प्रेमी युगल एक आदर्श बन गया। प्रेम में गिरफ्तार हर लड़की को लैला कहा जाने लगा और प्यार में दर-दर भटकने वाले आशिक को मजनूं की संज्ञा दी जाने लगी।
आजादी से पूर्व बन गया था यहां लैला मजनूं का मजार: देश की आजादी और भारत-पाक विभाजन से पूर्व यहां लैला मजनूं का मजार बन गया था। विभाजन के बाद भारत-पाकिस्तान दो देश बन गए। लेकिन इस मजार पर माथा टेकने दोनों आते रहे। दुश्मनी अपनी जगह थी और मोहब्बत अपनी जगह। राजस्थान की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं और समय समय पर सीमा पर तनाव की खबरें भी आती हैं। लेकिन दुश्मनी की इसी सीमा पर राजस्थान में एक स्थान ऐसा भी है जहां नफरत के कोई मायने नहीं हैं। जहां सीमाएं कोई अहमियत नहीं रखती है। यह स्थान राजस्थान के गंगानगर जिले की अनूपगढ़ तहसील के करीब है, जहां लैला मजनूं की मजारें प्रेम का संदेश हवाओं में महकाती हैं। अनूपगढ के बिजनौर में स्थित ये मजारें पाकिस्तान की सीमा से महज 2 किमी अंदर भारत में हैं।

सिंध के रहने वाले थे लैला मजनूं: बिजनौर के स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार लैला मजनूं मूल रूप से सिंध प्रांत के रहने वाले थे। एक दूसरे से उनका प्रेम इस हद तक बढ़ गया कि वे एक साथ जीवन जीने के लिए अपने-अपने घर से भाग निकले और भारत के बहुत सारे इलाकों में छुपते फिरें। आखिर वे दोनोंं राजस्थान आ गए। जहां उन दोनों की मृत्यु हो गई। लैला मजनूं की मौत के बारे में ग्रामीणों में एक राय नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि लैला के भाई को जब दोनों के इश्क का पता चला तो उसे बर्दाश्त नहीं हुआ और आखिर उसने निर्ममता से मजनूं की हत्या कर दी। लैला को जब इस बात का पता चला तो वह मजनूं के शव के पास पहुंची और वहीं उसने खुदकुशी करके अपनी जान दे दी। कुछ लोगों का मत है कि घर से भाग कर दर दर भटकने के बाद वे यहां तक पहुंचे और प्यास से उन दोनों की मौत हो गई।

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि अपने परिवार वालों और समाज से दुखी होकर उन्होंने एक साथ जान दे देने का फैसला कर लिया था और आत्महत्या कर ली। दोनों के प्रेम की पराकाष्ठा की कहानियां यहीं खत्म नहीं होती है। ग्रामीणों में एक अन्य कहानी भी प्रचलित है जिसके अनुसार लैला के धनी माता पिता ने जबरदस्ती उसकी शादी एक समृद्ध व्यक्ति से कर दी थी। लैला के पति को जब मजनूं और लैला के प्रेम का पता चला तो वह आग बबूला हो उठा और उसने लैला के सीने में एक खंजर उतार दिया। मजनूं को जब इस वाकये का पता चला तो वह लैला तक पहुंच गया। जब तक वह लैला के दर पर पहुंचा लैला की मौत हो चुकी थी। लैला को बेजान देखकर मजनूं ने वहीं आत्महत्या कर अपने आपको खत्म कर लिया।

अनगिनत कहानी हैं इस प्रेमी युगल की: लैला मजनूं के प्रेम की अनगिनत दास्ताने बिजनौर और पूरी दुनिया में फैली हुई हैं। कई भाषाओं और कई देशों में लैला मजनूं पर फिल्में और संगीत भी रचा गया है जो बहुत सफल हुआ है। शायद ही असल कहानी का किसी को पता हो लेकिन यह सच है कि लैला मजनूं ने एक दूसरे से अपार प्रेम किया और जुदाई ने दोनों की जान ले ली। प्रेम की इस भावना को नमन करते हुए बिजनौर की इस मजार पर हर साल मेला भी आयोजित किया जाता है। हर साल 15 जून को लैला मजनूं की मजार पर भरने वाले इस मेले में बड़ी संख्या में भारतीय और पाकिस्तानी प्रेमी युगल आते हैं, प्यार की कसमें खाते हैं और हमेशा हमेशा साथ रहने की मन्नतें मांगते हैं।
चमत्कारी है यह मजार: इस मजार को लेकर यहां कई ऐसी मान्यता हैं। स्थानीय लोगों में यह एक पवित्र स्थल है। हिन्दू इसे समाधि स्थल और मुस्लिम मजार मानकर अपना सिर नवाजते आए हैं। ये दोनों समुदाय लैला मजनूं की मजारों को एक जोड़कर देखते हैं और उनके प्रेम को नमन करते हैं। पहले इस मजारों के ऊपर एक छतरी थी। लोगों का कहना है इन मजारों पर उन्होंने कई चमत्कार होते देखे हैं। जो लोग यहां अपना दुख दर्द लेकर आते हैं उनके जीवन में कई अच्छी घटनाएं घटती हैं, उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। इसी चमत्कार ने हजारों लाखों लोगों में इन मजारों के प्रति असीम श्रद्धा भर दी है और वे हर साल यहां नियमित रूप से आने लगे हैं। वर्तमान में यहां दोनो मजारें एक दूसरे से सटी हुई दिखाई देती हैं लेकिन ऊपर छतरी ढह गई है।